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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मोर कि कहानी

एक दिन भगवान ने सोचा देखूँ दुनिया के रंग घुमते हुए उन्होने देखा पशु पक्षी तो रह गए बेरंग सोचा ये दुनिया हर तरफ से है कितनी सुन्दर प्यारे रंग - बिरंगे फुल खिलते है इसके अन्दर तब बहुत ना इंसाफी हुई इन पशु पक्षियो के साथ जल्द ही इसका उपाय करना होगा हाथो हाथ इन्द्रधनुष से उन्होने लिए कई सारे रंग अब नही रहेंगे ये पशु पक्षी बेरंग आदेश दिया उन्होने मोर को वहाँ बुलाया इन रंगो से तुम बदलोगे पशु पक्षियो कि काया मोर ने अपना फर्ज ईमानदारी से निभाया हर पशु-पक्षी को उनके पसंद का रंग लगाया तोता बोला मुझे चाहिए हल्का रंग हरा शेर वही से बोला रंग दो मुझे सुनहरा तभी वहाँ से आवाज आई भालू वहाँ से बोला मेरी पसंद तो हटके है मुझे चाहिए कोला सभी पशु-पक्षियो कि इच्छा तो हो गई पूरी लेकिन रह गया मोर बेरंग उसकी इच्छा अधुरी मोर ने सोचा कुछ न कुछ तो करना होगा उपाय मेरी भी इच्छा हो पूरी पर रंग कहा से आए तभी रंग के ङिब्बो पर गया मोर का ध्यान हर एक रंग लगाकर बढ गई सुन्दर मोर की शान तभी बादल गरजे और जोर का पानी आया पंख फैलाकर मोर ने अपना सुन्दर नाच दिखाया मोर कि सुन्दरता है इस बात का सबूत दुसरो

कविता का नजरीया

कोई समझे कविता बस दर्द मे लिखी जाती है तो कोई समझे कि यह तो दिमाग मे आती जाती है कोई कहता कविता नही लिखना है आसान तो कोई कहे कि कहा मिलता इसका ज्ञान कवि लोग जब लिखे कविता सोच के सागर मे ङूबे जाने कहा से उनको एैसी पंक्तिया कैसे सूझे कोई कहे कि कविता में बस हंसी मजाक ही होता है तो कोई कहता कि कवि तो पत्नी पर ही लिखता है कविताएँ तो होती है बङी बात का छोटा रूप छाया देती कवियो को जब निराशा कि लगती है धूप कोई समझे कविता लिखने का होता है जुनुन तो कोई समझे कि यह तो होता पीढीयो का खून कहता कोई कविता में कुछ मजा नही होता है पर कविता वो ताकत है जो मन के रूख को पलट दे कोई समझे कविता पर्यायवाची होती जल कि जैसा तुम लिखना चाहो बस उसी रूप मे ढल जाती

महंगाई का असर

जबसे महंगाई आई चिंता बङी है लाई जिस पर सबसे ज्यादा चिंता बच्चो ने दिखलाई बच्चो कि एक टोली मिलकर कर रही विचार उफ ये महंगाई बढ गई कितनी अबकी बार महंगाई के कारण पहले ही पङ गई है सोटी ऊपर से पापा ने जेब खर्च में कि कटोती कैसे होगी पार्टी अपनी दोस्तो ये बतलाओ महंगाई से बचने का कुछ उपाय तो लाओ अचानक एक विचार एक बच्चे के मन में सूझा एक ही उपाय है और नही कोई दूजा बङे लोग जो करते है काम वही करेंगे हम टेक्स लगाकर हर चीज पर जुटा लेंगे रकम आज से हमारे हर काम पर टेक्स लेंगे हम चाहे जो भी हो जाए टेक्स न होगा कम मम्मी दूध पिलाने को जिद नही करेगी पिलाना है यदि दूध हमे एक रुपया वो भरेगी पापा यदि कोई भी काम हमे बताए दो रुपये का टेक्स उन पर हम लगाए कोई भी बच्चा खेलने को ग्राउंङ मे अपने आए एक रुपये का टेक्स उससे हम चुकवाए चाहे जो भी हो जाए कोई टेक्स करेगा ना कम महंगाई कि मार अकेले क्यो झेलेंगे हम गलत किया बच्चो ने जो हर चीज पर टेक्स लगाए पर यह बात बङो से ही तो बच्चे सीख के आए पहले तो हर कोई किसी के काम युँ ही आ जाता अब तो हर काम के पिछे टेक्स जरूर लगाता क्या करे इंसान ये मजबुरी उ

गौ माता

एक बार ये सोच कर सो गई मैं रात को कैसे बयान करे गौ माता अपने अंदर के दर्द को तभी रात को सपने मे किरणो की रोशनी आई सपने मे मुझको दिखी गौ माता की परछाई कहा उन्होने मुझसे देने आई तुझे जवाब इंसानो ने कर दिया आज मुझे बर्बाद एक समय था जब मे हर जगह पुजी जाती थी कितनी सुन्दर खुशहाल सुनहरी हमारी बस्ती थी लेकिन आज का ये मानव ममता को मेरी खा गया मेरे मन को कितनी गहरी चोट वो पहुँचा गया कोई इतना खुदगर्ज जाने केसे हो सकता है किले चुभोता है उसको जिसके दुध से बढता है मैने तो इंसानो का भला हमेशा ही किया फिर आज उसने बेदर्दी से मेरा क्युँ कत्ल किया आज के इस संसार मे दम मेरा तो घुटता है मेरे प्यारे कान्हा का युग मुझे याद आता है आज के इस संसार मे कोई नही है मेरा दूध देती हूँ इसलिए क्योकी है धर्म ये मेरा मेरा चमङा काट कर मानव तो इतना खुश हुआ कैसे समझे उसकी माँ को तब कितना है दर्द हुआ खोलता पानी ङालकर मुझे कितना तङपाता है इससे मेरा नर्म चमङा उसको जो मिल जाता है काट कर मेरा गला उल्टा मुझको लटकाएगा ताकि उससे खून मेरा बाहर युँ बह जाएगा बोल नही सकती मैं सिर्फ चिल्लाती ही रहती हूँ अपने उस