संदेश

जून, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ब्राह्मण

* ब्राम्हणों से अपमान बर्दाश्त नही होता क्योकि उन्हें सदियों से सम्मानित होने की आदत है * लेकिन कुछ ब्राम्हण अपने कर्तव्य से गद्दारी करते है जिसके कारण पुरे ब्राम्हण समाज को अपमानित होना पड़ता है * जिसमे वो ब्राम्हण भी अपमानित हो जाते है जो अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाते है * ब्राह्मण का जन्म मिलना खुशकिस्मती है उसका दुरूपयोग ना करे। 😏😏😠😠🙁🙁🤨🤨

खेत में प्रकृति

खेत में प्रकृति की सुंदरता दिखती है, जो महसूस कर सके वही कर पाता है क्योकि आत्मीयता बाजार में नही बिकती है😊😊

रविवार

*रविवार के दिन महिला, पुरुष व बच्चों के जीवन पर एक चटपटी कविता* हर हफ्ते की ये सुबह होती ही कुछ खास है, रविवार की इस सुबह में अलग ही एक बात है, सबके जीवन पर इसका प्रभाव अलग सा होता है, देखे सबके जीवन में इस दिन क्या-क्या होता है? शुरुआत करे बच्चों से उनकी अलग है दुनिया, राजू, डबलू, शन्टू, मन्टू, चिंकी और मुनिया, आ जाओ खेलेंगे खेल बुला रही है तारा, छः दिन के बाद मिला है जेल से छुटकारा, रोज सवेरे बच्चों को नींद बहुत है आती, लेकिन रविवार को नींद जल्दी है खुल जाती, सारा दिन बच्चों को बस खाना और खेलना, इन सबसे फुर्सत मिले तब जाके फिर पढ़ना, आओ देखे रविवार के दिन पुरुषों का जीवन, छः दिन के काम के बाद मिल पाया इन्हें सुकून, देर तक सोना है इनको देर तक है उठना, गरमा गरम चाय के साथ पेपर फिर है पढ़ना, थोड़ा इधर को टहलेंगे थोड़ा उधर को घूमे, गुनगुनायेंगे गाने और मन ही मन में झूमे, चटकारे ले लेकर शांति से फिर खाना खाएंगे, खाना खाकर दिन में फिर से ये सो जाएंगे, अब आई महिला की बारी कैसा हो यह दिन? सारा दिन बस काम करो बजाते रहे ये बिन, रविवार के दिन महिला की ह

रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस

रानी हो, महारानी हो अखण्ड वीरता की, गौरव की अद्भुत एक निशानी हो, सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व तुम्हारा शास्त्र ज्ञान की धनी थी तुम, आँखों में वो साहस था चतुर बुद्धि बलशाली तुम, हर हर महादेव का नारा अद्भुत जोश जगाता था, कंठ तुम्हारा बलशाली जो आसमान गुँजाता था, जोश वो अब भी घटा नही जब नाम तुम्हारा आता है, लक्ष्मीबाई नाम से तनकर गर्व से सर उठ जाता है, आज के दिन को आँखे नम है हमने तुमको खोया था, मगर वो तुमको ढूँढ ढूँढकर थककर अंग्रेज रोया था, वीरगति को प्राप्त हो गयी स्वाभिमान पर गिरा नही, अभिमान हुआ खण्ड खण्ड अंग्रेजो को शव मिला नही, तुम तो थी पटरानी रानी सुख का जीवन जी लेती, मगर देशभक्ति जो तुम्हारी कैसे गुलामी सह लेती, २३ वर्ष की आयु में ही वीरगति को प्राप्त किया, कम ही सही पर स्वाभिमान और साहसी जीवन तुमने जीया, स्वाभिमान का जीवन क्या है? ये तुमने बतलाया था, आजादी को समझा तुमने देश में अलख जगाया था, आज समय फिर आया है जब जरूरत हमे तुम्हारी है, लक्ष्मीबाई के देश में देखो कैसे अबला नारी है, तुम पर कैसे नजर उठा दे सूरज की वो तपिश थी तुम, आज की नारी ठंडी पड़ गयी