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पिता

एक परछाई जो रहेगी साथ सदा, जो छाँव में भी करती अपना फर्ज अदा, हमारी परछाई तो सिर्फ रौशनी में साथ है, पर जो अँधेरे में भी साथ दे वह परछाई है पिता....।

टिड्डी से संवाद

*टिड्डी से संवाद* आज सुबह छत पर  एक टिड्डी मुझसे टकरा गई, झुंड से बिछडकर रो रही थी तो दया मुझको आ गयी, फिर मेने सोचा अरे! ये दया के नही है काबिल, खेत इतने उजाड़ दिए खड़ी कर रहे मुश्किल, पर चूंकि वो अकेली थी तो जोर जमाना ठीक नही, इसीलिए धीरे से पूछा क्या हुआ तुम रो क्यों रही? बोली झुंड खो गया डर रही सुना है तुम हमे भी खाते, पर हमें जो ईश्वर ने दिया हम तो बस वही है खाते, तुम इंसानो के मारे तो  पूरी प्रकृति परेशान है, दिमाग सही से क्यों ना चलाते? वो तो तुम्हारी शान है, अब परिस्थिति हुई ये की समझ मुझे ना आ रहा, कौन गलत है और किसे गुनहगार ठहरा रहा, फिर मेने कहा उसे कोशिश पूरी करेंगे, खुद समझेंगे और दुनिया वालो को भी समझायेंगे, और रही बात तुम्हे खाने की तो ये चीन नही भारत है, जो काफी कुछ बदल गया पर अब भी बहुत कुछ जाग्रत है, उसे कहा अब तुम उड़ जाओ पर अब और हमे ना सताना, वो भी टांट गजब की दे गयी बोली कोशिश करेंगे पर पहले तुम दिमाग वालो तो सुधर जाना...। *नूतन पू.त्रि.*

एकांत

हर घड़ी यह सोचती हूँ की क्यों इतनी अकेली हूँ मैं? क्यों कोई और नही खुद ही खुद की सहेली हूँ मैं? तब कही से जवाब आया  यह अकेलापन नही एकांत है, अपने अंदर झांको, खूबियां तराशो, इसीलिए तुम्हे मिला माहौल इतना शांत है.....।

त्राहिमाम त्राहिमाम

*त्राहिमाम त्राहिमाम* त्राहिमाम त्राहिमाम, प्रभु हमे भी दो जुबान, नही सही जाती है अब बेदर्दी इंसानो की, कितना सताते तड़पाते  क्या यही है होती बुद्धिमानी, आपने इनको बुद्धि दी पृथ्वी के सब अधिकार दिए, देखो उन्होंने उस बुद्धि से हम पर क्या उपकार किये, मैं हथिनी जो गर्भवती थी किसका बुरा किया था मैंने, विस्फोटक फल खिलाया मुझको नीच इंसान के क्या कहने, भूख लगी है माँ मुझको  पेट में बच्चा बोला था, मनमोहक एहसास से मेरा रोम-रोम तब डोला था, खाया तब अनानास जो मुझको लगा की बेटा खायेगा, नही जानती थी वह फल हम दोनों को तड़पाएगा, नीच इंसान ने हद कर दी अब नही सहेंगे अत्याचार, हमे भी हो लड़ने का हक चाहिए अब सारे अधिकार, शक्ति हममे इतनी है  हम खुद ले लेंगे अपना मान, इंसानो को धूल चटाकर धूमिल करेंगे उनका नाम, हाथ में अपने लेंगे प्रकृति खूब बढ़ाएंगे उसकी शान, त्राहिमाम त्राहिमाम, प्रभु हमे भी दो जुबान....। *नूतन पू.त्रि.*

चीन का बहिष्कार

*चीन का बहिष्कार* मित्रो,   चीन का बहिष्कार आज देश में बड़ा व अहम मुद्दा बन गया है जिसमे कई लोग इसके समर्थक है तो कई विरोधी। जो समर्थक है वे सोचते है कि जो देश हमारा बुरा चाहता है उससे रिश्ता शीघ्र ही पूर्णतः टूटना चाहिए जो की सम्भव नही और जो विरोधी है वह यह सोचते हैं कि चीन के बिना हमारा देश पंगु हो जाएगा जो तो बिल्कुल संभव नहीं।         मेरे अनुसार चीन का बहिष्कार तीन स्तरों पर होना चाहिए।  *1) उन चीजों का बहिष्कार हो जिनका विकल्प हमारे पास उपस्थित हो । हो सकता है विकल्प उतना अच्छा ना हो पर इतना बुरा भी नहीं होगा कि उसका उपयोग न किया जा सके।* *2) उन चीजों का बहिष्कार हो जिनका विकल्प तो नहीं पर वह इतनी आवश्यक भी नहीं कि जिसके बिना आपका जीवन रूक जाए या आपकी प्रगति रुक जाए या आपका कार्य अटक जाए।* *3) यहां वह चीजें आती है जो आज जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है जैसे मोबाइल व कुछ इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं। जिसका समय तब आएगा जब देश से उपयुक्त चीजें पूर्णतः बहिष्कृत हो जाएंगी अर्थात आखरी पायदान पर और संभव है कि तब तक भारत भी इसका विकल्प खोज ले।* अब जो चीन के बहिष्कार का विरोध करते हैं वह यह कहते हैं