*त्राहिमाम त्राहिमाम* त्राहिमाम त्राहिमाम, प्रभु हमे भी दो जुबान, नही सही जाती है अब बेदर्दी इंसानो की, कितना सताते तड़पाते क्या यही है होती बुद्धिमानी, आपने इनको बुद्धि दी पृथ्वी के सब अधिकार दिए, देखो उन्होंने उस बुद्धि से हम पर क्या उपकार किये, मैं हथिनी जो गर्भवती थी किसका बुरा किया था मैंने, विस्फोटक फल खिलाया मुझको नीच इंसान के क्या कहने, भूख लगी है माँ मुझको पेट में बच्चा बोला था, मनमोहक एहसास से मेरा रोम-रोम तब डोला था, खाया तब अनानास जो मुझको लगा की बेटा खायेगा, नही जानती थी वह फल हम दोनों को तड़पाएगा, नीच इंसान ने हद कर दी अब नही सहेंगे अत्याचार, हमे भी हो लड़ने का हक चाहिए अब सारे अधिकार, शक्ति हममे इतनी है हम खुद ले लेंगे अपना मान, इंसानो को धूल चटाकर धूमिल करेंगे उनका नाम, हाथ में अपने लेंगे प्रकृति खूब बढ़ाएंगे उसकी शान, त्राहिमाम त्राहिमाम, प्रभु हमे भी दो जुबान....। *नूतन पू.त्रि.*