हिंदी
हिंदी, हिंदी, हिंदी, हिंदी, हिंदी तुम्हे पुकारूँ मैं कहाँ छुपी हो नजर ना आती आज दिवस तो है तुम्हारा क्यों ना हँसती खिलखिलाती सामने आओ पूजा करूँ मैं और आरती उतारू मैं हिंदी, हिंदी, हिंदी, हिंदी, हिंदी तुम्हे पुकारूँ मैं तुम तो सभ्यता की मूरत स्वच्छ सजीली तुम्हारी सूरत विवेकानन्दजी का ज्ञान हो तुम भारत का सम्मान हो तुम वट पड़ता बतियाने में गर्व से उठता सर हमारा हिंदी सुनने और सुनाने में फिर तुम क्यों शर्माती हो सामने क्यों ना आती हो छुपते छुपते खो ना जाना मन ही मन घबराऊँ मैं हिंदी, हिंदी, हिंदी, हिंदी, हिंदी तुम्हे बुलाऊँ मैं स्कूल, कॉलेज और भी कितनी सारी किताबे टटोली मधुर लेकिन दबी हुई सी हिंदी कही से बोली कैसे आऊँ सामने मेरे सर पर बोझ बड़ा है अंग्रेजी का बड़ा सा ढेर सामने मेरे खड़ा है याद नही आती है किसी को क्यों फिर मैं इतराउँ अपनों से ही अपमान मिले तो सामने क्यों फिर आऊँ बात कड़क पर अटल सत्य है मूर्खता तो झलकती है अपनी भाषा छोड़ कर गेरो पर लार टपकती है अपनी शान छोड़कर गैरो की पूंछ पकड़ना शर्मनाक है दुसरो की भाषा में यूँ अकड़ना पर हिंदी हम हिंदी बच्चे गर्व से हम