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अतिक्रमण का भय

जोरदार है दृश्य यहाँ का आँखों देखा सुनाती हूँ, अतिक्रमण का भय देखकर मन ही मन मुस्काती हूँ, कितनी चिल्लम चिल्ली यहाँ है भोर हुई सब काम लगे, अतिक्रमण में आते पतरे घुमटी भी खुद ही उखाड़ रहे, कोई यहाँ से चिल्लाता है कोई वहाँ पर भाग रहा, जल्दी करो रे आ ही रहे है लेकर वो जे सी बी यहाँ, मंदिर में मैं बैठी बैठी आनन्द से सब देख रही, आज दिखा जो भय वो जरूरी मन ही मन में सोच रही, करते है सब कोशिश यहाँ थोड़ा ही सही पर कुछ तो बचे, फर्जीवाड़े दिल के अरमाँ आँसुओ में बह रहे, मंदिर में दर्शन को आते फोन पर चिल्लाते है, जल्दी कर तू दर्शन करके हम भी फटाफट आते है, लोगो की परेशानी पर यु हास्य बनाना ठीक नही, लेकिन ख़ुशी इस बात की है की बेईमानी सब झटक रही, आज होंगे परेशान तभी तो कल को सुधरेंगे, खुद ने किया या पूर्वजो ने बेईमानी तो भुगतेंगे, इसलिए तो कहते है कि बेईमानी अटकाती है, एक न एकदिन बिच भँवर में तुमको वो लटकाती है, सम्भल जाओ तुम सुधर ही जाना बेईमानी को छोड़ दो, अतिक्रमण हो जब तुम्हारे यहाँ तो अपने ईमान पर फक्र करो, जो आज नही तुम अतिक्रमण में इसे ईमान का फल समझो और दृ

फिर बलात्कार

*फिर बलात्कार* *कोशिश करना पूरी पढ़ने की और नही तो कोई बात नही* एक घटना रेप की हुई लगे स्टेटस हजार, फिर हुई वही घटना डाले बार-बार, लगा ली बहुत आग हमने मोमबत्तियों के ढेर में, अपराधी भी जमे हुए है उन्ही लोगो की भीड़ में, ये ना कोई समाज है और ना ही कोई झुण्ड, मस्तिष्क में आजाद है गन्दगी की धुन, कैसे तुम पहचानोगे? है क्या कोई मशीन? मर रही हैवानो के बीच नारी रात-दिन, दुःख थोड़ा हम जताते है, गुस्सा तो बहुत ही आता, लेकिन जरा एक बात तो बताओ इससे अपराधियो का क्या जाता? कई के लिए रो चुके, और फिर कई के लिए रो लोगे, हाय हाय कानून कहकर सड़कों पर चिल्ला लोगे, चार दिन की चाँदनी फिर वही होगी काली रात, चंद भर के लिए फुटकर फीर सो जाते हमारे जज़्बात, अगर चाहते हो की अस्मत नारी की फिर ना लुटे, तो सोचो कुछ ऐसा जिससे हर अपराधी कांप उठे, एक से बढ़कर एक ज्ञानी भरे हुए है देश में, पर बैठे है मुग्गे बन बेचारो के भेस में, इन घटना को रोके कैसे वहाँ दिमाग ना चलता है, सारे मिलकर सोचकर देखो अपराधी कैसे जलता है, हर गाँव और शहर में ऐसी संस्था का निर्माण हो, जो करे इसी पर काम सि

क्या सही? क्या गलत?

कुछ बाते जो अनुभव की वह आपको भी बताती हूँ, लोगो की मानसिकता को अपनी कविता से दर्शाती हूँ। ना जाने लोग तर्को को किस तराजू में तोलते है, ऊपर तापर देखकर ही सही को गलत और गलत को सही बोलते है। *प्रश्न है कि बच्चों का भविष्य कैसे बनेगा?* *गहराई में यदि सोचोगे तो देखना* *आपको भी नही जमेगा* बच्चों को सिखलाने का इनका अंदाज़ तो देखो, जो मन में आये वही करो जो मन ना करे वो फेंको। बच्चों को भजन सिखलाना उनके बचपने पर बोझ जबकि भक्ति से मिलता है सुकून, और फ़िल्मी, अश्लील, इश्क के गीत सिखाने से तो उत्तम बनती ना सोच जबकि ऐसे गीत है बचपने का खून। *वाह रे वाह क्या बात है......* बच्चों को धार्मिक पुस्तके पढ़ाना उनके बचपने पर बोझ जबकि सिद्ध है कि यह ज्ञान है सटीक, पर बच्चों को फिल्मे दिखाकर फ़िल्मी ज्ञान देने से तो जीवन सुधरता ना रोज जबकि अनावश्यक है यह सीख। *वाह रे वाह क्या बात है......* बच्चों को सभ्य कपड़े पहनाना उनके बचपने पर बोझ जबकि सभ्यता ही है श्रेष्ठ संस्कृति, पर बच्चों को अंग प्रदर्शन सिखाने से तो बढ़ता ना उनका ओज जबकि अश्लीलता है मानसिक विकृति। *वाह रे वाह क्या बात ह

मिसाइल मेन

काश अगर ऐसा होता ये धरती प्रेम में बह जाती, ना होती जरूरत बम की ना मिसाइल बनाई जाती, ना इस तरह धरती माँ के परखच्चे यु उड़ाए जाते, हम बच्चे है धरती माँ के माँ का प्रेम समझ पाते, लेकिन काश तो काश ही होता सच भला कब होता है, अधर्म का मिटना भी जरूरी साधन बढ़ता जाता है, भारत भूमि की आन के खातिर रक्षा और स्वाभिमान के खातिर मिसाइल का किया निर्माण, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, श्रेष्ठ वैज्ञानिक, मिसाइल मेन एपीजे अब्दुल कलाम जी को उनकी जयंती पर हृदय से सलाम। *नूतन पू.त्रि.*

जब से देखा है.......

*जब से देखा है.....* जब से देखा है ईर्ष्यालु लोगो को हमने ईर्ष्या करना छोड़ दिया है, क्योकि ये ना खुद खुश रह पाते है और ना किसी को रख पाते है। जब से देखा है घमंडी लोगो को हमने घमंड करना छोड़ दिया है, क्योकि इनके पास इनके खुद के सिवा और कोई नही होता है। जब से देखा है लालची लोगो को हमने लालच करना छोड़ दिया है, क्योकि ये चंद खुशियाँ खरीदते है लाखो की खुशियाँ दाव लगाकर। जब से देखा है इश्कबाज़ों को हमने इश्क करना छोड़ दिया है क्योकि अक्सर इश्कबाज इश्कबाज़ी करते वक्त अपनों और सपनों को भूल जाया करते है। जब से देखा है नास्तिक लोगो को हमने खुद को ईश्वर से और जोड़ लिया है, क्योकि ये जीवन को सुलझा ही नही पाते है। जब से देखा है स्वार्थी लोगो को हमने स्वार्थी बनना छोड़ दिया है, क्योकि ये खुद को ही खुश रखने के चक्कर में अक्सर खुद ही दुःखी रह जाते है। हमे तो जीना है सुकून का जीवन इसीलिए अच्छी अच्छी बातें अपनाते जा रहे है, सभी के जीवन से आएदिन कुछ न कुछ सीखते जा रहे है। *नूतन पू.त्रि.*

व्हाट्सअप ज्ञान, अफवाह का मैदान

*व्हाट्सअप ज्ञान, अफवाह का मैदान* *यदि आप भी व्हाट्सअप पर आये msg को तुरंत फॉरवर्ड करते है तो एक बार यह msg जरूर पढ़ें* मित्रो, अभी कई दिनों से देख रही हूँ की कुछ लोग रावण भक्त बन रहे है और उनकी भक्ति में उनकी तारीफों के पुल व्हाट्सअप पर बांधे जा रहे है और कितने ही लोग उस पर आँख बन्दकर चले जा रहे है। कोई रावण को महान बता रहा है, कोई सभ्य की उन्होंने सीता माता को छुआ तक नही, कोई श्रेष्ठ भाई की अपनी बहन के सम्मान के लिए युद्ध किया, कोई सबसे बड़ा शिव भक्त तो कुछ msg तो ऐसे बना दिए की जिसमे बेटी कहती है मुझे रावण जैसा भाई या पति चाहिए। *हद है मतलब कुछ भी* आप सभी ने msg पढ़े और उसकी खूब तारीफ की और आगे भेज दिया एक बार सोचा तक नही की यदि रावण अच्छा होता तो क्या विष्णु भगवान को राम अवतार लेना पड़ता? यदि रावण अच्छा था तो क्यों राम राज्य का आना उसके अंत पर निर्भर था? क्यों उसे समाप्त करने के लिए सरस्वती माता ने मंथरा की बुद्धि फेरी और रामजी को १४ वर्ष का वनवास दिलवाया? यदि रावण महान था और अच्छा राजा था तो उनके राज्य में जो राक्षस ऋषि, मुनियों को खा जाते थे उनके यज्ञ भंग कर देते थे उसमे मांस ड

बच्चों को बच्चा रहने दो

विनती करे जमाने से अब रहा ना जाये कहने दो, छल, कपट से परे है जो बच्चों को बच्चा रहने दो। मत सिखलाओ उनको तुम झगड़े को बदलना नफरत में, पल में कट्टी, पल में बट्टी यही तो उनकी फितरत है, जीवन भर कुड़ना ही है फिर अभी सुकून से जीने दो, छल, कपट से परे है जो बच्चों को बच्चा रहने दो। तुम्हारी रंजिश तुम ही जानो बच्चों का इसमें दोष है क्या? तुम पर करे भरोसा यही उनका कोई दोष है क्या? तुम जो कहते मान वो जाते मासूमियत में बहने दो, छल, कपट से परे है जो बच्चों को बच्चा रहने दो। गलत, सही में फर्क बताओ, अश्लीलता से उन्हें बचाओ, उम्र से बड़ी वो बाते करते ऐसा ज्ञान ना उन्हें सिखाओ, मोबाइल उनकी नही जरूरत फिर देते जाने क्यों भला? मोबाइल बचपन का है दुश्मन माता-पिता ने जानकर छला, बचपन उनसे छीनो ना उन्हें शरारत करने दो छल, कपट से परे है जो बच्चों को बच्चा रहने दो। दुनिया की बुराई से अवगत उन्हें कराओ, लेकिन इस कोशिश में बुराई उन्हें ना सिखलाओ, याद रखो जो अभी सीखेंगे वैसा जीवन बनाएंगे, अच्छा ज्ञान ना दोगे तो जीवन समझ ना पाएंगे, मासूम उनके दिल और दिमाग पर बुराई को ना छलने दो,

संजा माता

भविष्य की एक बात बताऊँ ये जब होने वाला है, एक था त्यौहार संजा माता ये कहलाने वाला है, कितना अच्छा प्यारा त्यौहार हम क्यों खोते जा रहे? संजा माँ के गीत छोड़कर जाने कौन से गा रहे? गोबर से कागज तक तो माँ पहले से ही पहुँच चुकी, अब इतना भी आँखों से लगता ओझल होने वाला है, गोबर की संजा का महत्व तुम क्या जानो छोरियां, जो उम्र से पहले बड़ी हो गयी बचपन की छोड़ी डोरियाँ, फीकी, मीठी, खट्टी, तीखी, बोलो कौन सी है परी, लेकिन अब ये खेल नही बीत गयी वो सुहानी घड़ी, त्योहारों का महत्व अब मनोरंजन जितना रह गया मनोरंजन के प्रति सभी का नजरिया भी तो बदल गया, जब तक ढोल धमाका झगमग इनको ना लुभाएगी, उस त्यौहार की रीत तो फिर इतिहास ही बन जायेगी, परंपराओं को नाम दे दिया ये तो है रूढ़िवादी, जो फैशन के साथ ना चली वो परम्परा अब ना रही, दिख ही रहा है छोड़ संस्कृति कितना खुश तुम रहते हो, त्योहारों के रंग नही तुम उसको जीवन कहते हो।

ब्राह्मण की लड़की हूँ

ब्राह्मण की लड़की हूँ, घमंड नही पर गर्व जरूर करती हूँ, अपनी संस्कृति अपनाने में ना शर्माती हूँ और ना ही उस पर इतराती हूँ, ब्राह्मण का कर्तव्य है  सीखना और सिखाना बस यही कोशिश तो करती हूं, अब जिसे लगे ये अकड़ या गुरुर है, वो अभी ब्राह्मण को समझने में काफी दूर है। ☺☺🙏🏻🙏🏻

डूब का दर्द

देखो तो देखो क्या गजब हो गया, इंसान का दर्द बस अख़बार में बस गया, कही बरसाती झड़ियाँ आई तो कही हुआ त्राहिमाम, बाप रे ये क्या हो गया बस इतना कहकर हुआ काम तमाम, ना किसी को कुछ फर्क पड़ता है ना किसी की कोई अड़ी है, पीड़ितो को कोई मदद नही इंसानियत तो कही कोने में पड़ी है, बड़ी बड़ी खबर बनाना है सबको वो ढूंढते है नजारे, हर जगह की गिनती लगाते की बाढ़ ने कहा कितने मारे? जितनी संख्या ज्यादा होगी उतनी होगी टी आर पी, ऐसी सोच रखने वालों की तो उतारनी चाहिए आरती, मानते है कि अख़बार, टीवी जरिया है मध्यस्थता का, पर खबर पर ही ध्यान देना इससे बुरा और क्या होगा? लोग भी तो मजे लेने को सारी खबरे पढ़ते है, फिर बाद में मिल बैठकर गपशप सारी करते है, घोटाले पर घोटाले देख कर मन दुःखता है, पीड़ितो से उनका मुआवजा तक छीन लेते ऐसे लोगो पर बाढ़ का पानी क्यों नही टूटता है? खबरों को पढ़ पढ़कर तो हर किसी का दिल दहकता है, पर बाढ़ पीड़ितों पर क्या बीत रही उनका दर्द कोई नही समझता है, कोई नही समझता है!

शिक्षक

शिक्षक, आंतरिक सुंदरता व जीवन की भव्यता का निर्माता है, वह हर क्षेत्र के ज्ञान का ज्ञाता है, वैज्ञानिक हो, चिकित्सक हो या हो कोई इंजीनियर सभी वही तो बनाता है, फिर भी कभी घमंड नही दिखाता है, साधारण से दिखने वाले, सादगी से जीने वाले, बड़ी बड़ी समस्याओ को चंद पलों में सुलझा जाते है, ऐसी जीवंत कला के कलाकार शिक्षक ही तो कहलाते है, जो ना कभी थकते है, शिक्षा के मंदिर में ज्ञान भरपूर परोसते है, निःस्वार्थ भाव से अपने ज्ञान का धन कई मजबूत नींव बनाने में लुटाते है, ऐसे दानवीर शिक्षक ही तो कहलाते है, पर एक सच्चाई और भी है, ऐसे सच्चे शिक्षक आजकल कहाँ दिखे? खेर पर इससे शिक्षक की परिभाषा बदल ना जाती है, शिक्षक की परिभाषा तो सुनहरे शब्दो में लिखी जाती है, अब जो शिक्षक के इन गुणों पर खरे उतरते है, वो शिक्षक कहलाते है, बाकि तो नोकरी करते है और तनख्वाह लेकर घर लौट आते है। *सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ।*

वह दौर

कितना ही टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी कर लो पर दौर यार वही अच्छा था, मोबाइल ले लो, सुविधाएँ ले लो पर लौटा दो वो दौर जो कितना मासूम व सच्चा था ☺☺🙏🏻🙏🏻

संस्कृत दिवस

देवो की भाषा जिसमे श्रेष्ठता का वास है, ऐसी भाषा जिसे बोलने में लगती मिठास है, संस्कृत की सम्पन्नता उसे हर और सम्मान दिलाती है, सभी भाषाओं में संस्कृत ही ऐसी भाषा है जो पूर्ण कही जाती है। * सभी को संस्कृत दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ * 😊😊

स्वतंत्रता दिवस

आज के दिन की बात ही अलग है, आज की हवाओ का साज ही अलग है, पंछियों के गीतों में अलग ही सुरताल है, सबके दिलों की धड़कन बेहाल है, हवा जो हल्के से गालो को छू जाती है, ऐसा लगता है भारत माँ प्यार से सहलाती है, इतने वर्ष बीत गये पर आज भी आँखे नम है, देशभक्ति से भरा है मन ये ना समझना कोई गम है, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आप ही बन जाती है, जब हम सबके प्यारे तिरंगे को सलामी दी जाती है, पुराने दिनों को याद कर तिरंगा भी मुस्काएँ, *स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को ढेर सारी* *शुभकामनाएँ*

कचरा गाड़ी बहुत जरूरी है

जगह - जगह कचरा फैला है स्वच्छता अधूरी है, देश के हर एक क्षेत्र में कचरा गाड़ी जरूरी है। अहम क्षेत्रो की बात करे तो राजनीती है अव्वल पर, कचरा इतना भरा यहाँ की प्रदूषित हवा उड़े सर-सर, देश चलाते, आगे बढ़ाते यह कहना है उचित नही, कुछ अच्छे भी ढेर में दबे है यह जनता को सूचित नही, कुछ एक गाड़ियां लगी हुई कोशिश भी करती पूरी है, पर ढीट है कचरा जमा हुआ सहयोग हमारा जरूरी है। दूसरे नम्बर पर शिक्षा के क्षेत्र ने बाजी मारी है, यहाँ लगी जो गाड़ियां वह जंग खाती बिचारी है, गाड़ियां तो है खूब यहाँ पर चालक मिले ना कोई, कचरा गाड़ी में भरते ज्ञान, कचरे को देते सम्मान, ऐसे है कुछ लोग महान, यहाँ बुद्धि सबकी सोई, इस क्षेत्र में समझदारों की हालत बहुत ही बुरी है, इस क्षेत्र में कचरा गाड़ी चलाना बहुत जरूरी है। इसके बाद जो नम्बर है वह है टीवी की दुनिया का, यहाँ ना कोई गाडी है क्योकि कचरे के सब आदि यहाँ, कचरे को कचरा ना कहना जनता तक भड़क जाती, ये कचरे की गंदगी भी सबको बहुत पसंद आती, युवाओं की बुद्धि को ये दीमक जैसे खाते है, अश्लीलता की गंदगी ये खुलेआम बिखराते है, इस क्षेत्र में कच

हिंदी के कुछ स्तम्भ, जिनमे एक थे मुंशीजी और एक है हम

मुंशी प्रेमचंद जी के नाम से ही कितने किस्से ताजा हो जाते है, यादो की गाड़ी पलट जाती और हम अपने विद्यालय पहुँच जाते है, हिंदी साहित्य जिनके लेखन से भरा है, इनका नाम तो बड़ा है ही पर इनका व्यक्तित्व भी गहरा है, पूस की रात, बूढी दादी, गौदान जैसी सामाजिक घटनाओं का किया चिंतन, कई श्रेष्ठ रचनाएँ रची जिनमे मुख्य है पंच परमेश्वर, मंत्र, नशा और गबन, ऐसे लेखकों की महानता व हमारे जीवन में हिंदी साहित्य का व हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद जी का महत्च हमे तब कहा समझ आता था, तब तो बस कुछ रचनाएं सामान्य सा जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में लेखकों का थोड़ा योगदान समझकर बस एक रट्टा लगाना होता था, बस किसी तरह थोड़ा बहुत लिखकर पास हो जाये, और परीक्षा होते ही सब कुछ भूल जाये, ये तो हुई हमारी पीढ़ी की बात, पर हमसे पहले की पीढ़ियों को होता था काफी कुछ याद, फिर बात करे उससे पहले की पीढ़ी की तो उन्होंने तो हिंदी साहित्य में जी जान लगाकर दी हिंदी साहित्य को सम्मान भरी सौगात, कहने का तात्पर्य यह है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी घटते चले आ रहे है, अपनी मातृभाषा का साहित्य रटते चले आ रहे है, और अब

काबिल

जीवन सरपट भागे लेकिन कुछ एहसास जरूरी है, जीवन में सफलता हो पर कुछ का विश्वास जरूरी है, हो विश्वास तो कुछ कर जाना इतना भी मुश्किल नही, शून्य बनकर रह जाए हम इतने नाकाबिल नही। 😊😊

भीड़ से अलग

आप भीड़ से अलग सोचते हो इसीलिए लोग आपको पागल समझते है 😡😡 समझने दो 😇😇 आप अलग राह पर चलते हो इसीलिए हँसते है 😆😆👉👉😡 हँसने दो 😇😇😇 बेवकूफ कहते है 😡😡😡 कहने दो 😇😇 वो क्या है ना भीड़ के पीछे चलने वाले कुएँ में भी कूद जाते है यह सोचकर की शायद कुएँ में कामयाबी होगी तभी इतने लोग कुएँ में कूद रहे है 😆😆😆👆👆 लेकिन जो अलग किन्तु उचित राह चुनता है वो एक दिन तमाम भीड़ को अपने पीछे लाने की ताकत रखता है 💪😇💪 क्योकि भीड़ के पीछे चलने वाले लोग कामयाबी के पीछे आँख बन्दकर भागते है लेकिन खुद कामयाब नही हो पाते कामयाब वो लोग होते है जो अलग किन्तु उचित राह चुनते है 😇😇

लघुकथा- सत्य का ज्ञान

*"सत्य का ज्ञान"* "आज हम होटल जाएंगे" "आज हम होटल जाएंगे" बच्चे बहुत खुश है क्योंकि आज महीने का वह दिन है जब दादाजी "केशव जी" अपने पूरे परिवार को होटल खाने पर ले जाते है महीने में बस एक दिन। होटल पहुँचते है। खाना ऑर्डर करते है। फिर जब वेटर खाना लेकर आता है तब ये क्या??? केशवजी अचानक भौचक्के से खड़े हो जाते है कुछ ही पल बीतते है कि अश्रुधारा बहने लगती है परिवार के सदस्य कुछ कहे उससे पहले ही वो वेटर और केशवजी गले मिलकर रोने लगते है। सभी आश्चर्यचकित से उन्हें देखते है और फिर बच्चे पूछते है दादाजी ये कौन है? केशवजी कहते है - ये मेरे बचपन का यार है इसका नाम है "माधव" बच्चे फिर आश्चर्य से पूछते है! ये आपके बचपन के यार कैसे हो सकते है? ये तो कितने बूढ़े है और आप तो कितने जवान हो। बच्चों इसका कारण में आपको बताता हूँ, "माधवजी ठक्क से मुस्कुराते हुए बोले" दरअसल जब हम गाँव से शहर की और बढ़े थे। तब हम दोनों के बीच अलग सोच की एक दिवार खड़ी हो गयी थी और हम दोनों ही अपनी सोच को सही ठहराने में लगे रहते थे। एक दूसरे से कहते रहते थे की एक