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फिर बलात्कार

*फिर बलात्कार* *कोशिश करना पूरी पढ़ने की और नही तो कोई बात नही* एक घटना रेप की हुई लगे स्टेटस हजार, फिर हुई वही घटना डाले बार-बार, लगा ली बहुत आग हमने मोमबत्तियों के ढेर में, अपराधी भी जमे हुए है उन्ही लोगो की भीड़ में, ये ना कोई समाज है और ना ही कोई झुण्ड, मस्तिष्क में आजाद है गन्दगी की धुन, कैसे तुम पहचानोगे? है क्या कोई मशीन? मर रही हैवानो के बीच नारी रात-दिन, दुःख थोड़ा हम जताते है, गुस्सा तो बहुत ही आता, लेकिन जरा एक बात तो बताओ इससे अपराधियो का क्या जाता? कई के लिए रो चुके, और फिर कई के लिए रो लोगे, हाय हाय कानून कहकर सड़कों पर चिल्ला लोगे, चार दिन की चाँदनी फिर वही होगी काली रात, चंद भर के लिए फुटकर फीर सो जाते हमारे जज़्बात, अगर चाहते हो की अस्मत नारी की फिर ना लुटे, तो सोचो कुछ ऐसा जिससे हर अपराधी कांप उठे, एक से बढ़कर एक ज्ञानी भरे हुए है देश में, पर बैठे है मुग्गे बन बेचारो के भेस में, इन घटना को रोके कैसे वहाँ दिमाग ना चलता है, सारे मिलकर सोचकर देखो अपराधी कैसे जलता है, हर गाँव और शहर में ऐसी संस्था का निर्माण हो, जो करे इसी पर काम सि