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जुलाई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कारगील

आज दिवस है विजय तिलक का गर्व करो सम्मान करो देश के खातिर शहीद हुए जो अपने परिवार को छोड़ देश के खातिर विजय युद्ध में अपनी जान गवां गये वो उनके खातिर हर एक पल में अपने दिल, दिल की धड़कन में भारत माँ का सम्मान करो कितनी माँ की गोद छूटी कितनी सुहागनों की अपने देश की शान बचाने में हाथों की चूड़ियां टूटी कितनी बहने रह गयी भाई के इन्तजार में सम्मान की हकदार है वो जो देश की आन बचाने को अपनी राखी वार दे विनती है सभी से इतनी भारत माँ को मान दो हमारे खातिर शहीद हुए जो उनको तुम सम्मान दो कारगील विजय दिवस की ढेर सारी बधाई

दरिंदे

क्या हो तुम..... कैसे हो तुम? तेरे फैसलो को यूँ कुचल रहे है देख देख ये वहशी दरिंदे तेरे वजूद से खेल रहे है एक बनाया नियम तूने बलात्कारी को फांसी सजा फिर भी कहाँ ये दरिंदगी का सिलसिला है रुक रहा दरिंदो को तो डर नही पर हैवानियत वो झेल रहे है देख देख ये वहशी दरिंदे तेरे वजूद से खेल रहे है हर रोज एक घटना नई तुझपर ऊँगली उठाती है दरिंदो की ऐसी ललकार तेरे क्रोध को ना भड़काती है? उनके गंदे विचारों को तेरे देश के माँ बाप झेल रहे है देख देख ये वहशी दरिंदे तेरे वजूद से खेल रहे है सोच रहे हो हर एक शब्द किसे दोषी ठहरा रहा सोच कर देखो तीर कही ये तुम पर तो ना आ रहा हर एक जन वो दोषी है जो अश्लीलता भड़काता है हर एक जन वो दोषी है जो उसमे डूबा जाता है दोषी को तो आज या कल फांसी हो ही जायेगी पर कैसे ये अश्लीलता की गन्दगी दूर जायेगी???? आजादी की बात करो तुम लो आजादी मिल ही गयी अश्लीलता की कली कली इन घटनाओं से खिल गयी रोक लगा लो अब भी समय है गलत सोच के जरियो पर क्योकि मन तो वही करेगा जैसा देखेगी नजर युवाओं को बददिमाग कर उनके जरिये फैल रहे है देख देख ये वहशी दरिंदे तेर

एक बात

आज अचानक आई है मन में मेरे एक बात बहुत बुरा हुआ जो हुआ उन बच्चियों के साथ लेकिन बात ये है कि जब में रोज खोलती हूँ अख़बार एक खबर तो होती है कि यहां हुआ है बलात्कार फिर आक्रोश क्यों आया है इन दो ही घटना में? फिर समझ आया की इनमे कोई नही अपना है बात तो ये थी की सबको चाहिए था एक मौका कैसे किसी धर्म, पार्टी पर जाये लगाया चौका वाकई जो कुछ दर्द है तो हर पापी की बात करो उनके दर्द में आकर अपना उल्लू सीधा ना करो बाकि बच्चियां सोचती होंगी उतर गई जो मौत के घाट आक्रोश इतना तब भी होता होती अगर धर्म की बात बात इतनी सी है कि इस आक्रोश से फर्क ना पड़ता है क्योकि सजा होने तक बस उसका ही परिवार लड़ता है।