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भारत को पहचानो

*भारत को पहचानो* वो कहते है मेरा भारत  दूसरे देशों से कितना कम है, एक बात मुझे बतलाना जरा  क्या अपने देश के साथ हम हैं? हम गलियों में चौपालों पर इकट्ठे होकर बात करें,  दूसरे देश से करके तुलना  भारत का उपहास करें, हम करते हैं उम्मीद की अपना  भारत सब की नकल करें, उनकी प्रतिभा को अपनाकर  आगे बढ़ने का श्रम करें, इतना कहने से पहले यदि  एक बार खुद में झांका होता,  भारत की प्रतिभाओं को भी  तुमने कभी आंका होता, भारत की प्रतिभा को निखारो  दुनिया भर से कम नहीं,  फिर भारत के आगे टिक जाए  इतना किसी में दम नहीं, भारत अपना उभरे पर हम  बोझ तले तो दबाते हैं, अपने स्वर्ण आभूषण को छोड़  नकली गहनों से सजाते हैं, नृत्य शैलियां है वरदान  अद्भुत आयुर्वेद बड़ा महान  प्रकृति के जो संग चलाए  ऐसी दिनचर्या का ज्ञान, चाणक्य की नीति देश में  पर अपनाएं कौन यहां? विदेशों में तो यह सब है  बस इतना ही दिमाग चला, ज्ञान मिला वरदान हमें  कभी विचार करने बैठे हो, पर तुम तो ठहरे नकलची बंदर  नकलों में ही ऐठे हो, ज्ञान नहीं विज्ञान भी गहरा  खोजकर तो देखा होता, साथ दिया होता हमने तो  ज्ञान भारत का ना खोता, पर सोया ही है खोया नह

गुरु होते सर्वव्यापी

गुरु होते सर्वव्यापी ज्ञान पाए हर जन, ईश्वर के दूजे रूप का गुरु है वर्णन, ना होते अगर गुरु तो अंधी होती दुनिया, ज्ञान के प्रकाश से वंचित होती दुनिया  ना होती फिर महाभारत ना होती रामायण  गुरु ज्ञान ना लेते राम कृष्ण ज्ञान ना अर्जुन...।

गुरु

गुरु नहीं सिर्फ शब्द है,  गुरु की महिमा अपार,  गुरु ज्ञान जो सोख ले,  जीवन हो साकार, गुरु अगर ना पास हो, फिर भी हमारे हो साथ, शुद्ध व्यक्तित्व चाहिए तो  थामो गुरु का हाथ।