फुर्सत के पल
*फुर्सत के पल* आज फुर्सत में बैठी थी, तो सोचा प्रकृति से कुछ बाते करू, कुछ उससे पुछु, जानू तो कुछ अपनी भी बात कहूं, मेरी तरफ से शब्द है और उसकी तरफ से इशारा, समझने के लिए आंख मूंद कर लेती मन का सहारा, पुछु कुछ जो मन को भाए तो ठंडी हवा प्यार से आए, बात कहूं कुछ गुदगुदी सी पत्तों में वह शर्मा जाए, कह दूँ कुछ जो अनचाहा सा बिजली कडके बादल गरजे, बीच-बीच में बोले प्रकृति करती रहा करो बातें लगाया करो ना अरसे, कुछ ही देर में हम दोनों का तालमेल कुछ यू बैठा, वह भी मुझसे जुड़ गई और मेरा मन भी प्रसन्नता से भर बैठा, फिर बातों में बातें कुछ निकली प्रकृति का मन भर आया, हल्की बारिक बूंदों से उसने अपना दुःख छलकाया, बारिश हुई तो भीग जाऊंगी मैंने कहा चलो मैं चलूं, तुझको तो पसंद था भीगना बड़ी हो गई मैं क्यो सहूँ? दोस्ती में हर भाव है होते उसने नाराजगी दिखलाई, अचानक हुई तेज बारिश और मेरी रचना बह गई, पर खुशी हुई मुझे इस बात की ताजा हुई वो यादें और मै प्रकृति के साथ मस्ती करने कुछ देर और रह गई.....। *पूजा ओझा (नूतन पू.त्रि.)*