विकट तो है समस्या पर कोई तो हल निकाल लेंगे, सेहत अपनी ही तो है फिर सम्भाल लेंगे, खाना-पीना, यही है जीना, उधड़ेगी जो सेहत तो डॉ सारे है ना, डॉ को जो ज्ञान है इतना वो कब काम मे लेंगे, सेहत अपनी ही तो है फिर सम्भाल लेंगे, ऐसी ही आजाद है सोच अब आजाद सारे पंछी, खाओ पियो, मौज करो सेहत तो बिगड़ती बनती, इतने हल्के में लेते सेहत को जबकि यही जीवन का आधार, मन बेचा विकृत आहार को हम करते ही नही इनकार, शरीर हमारा, सेहत हमारी, पर काबू करे कोई और, कितने अक्लमंद है ना हम जो खुद डाल कर गले मे फंदा किसी ओर को थमा दी डोर, विकृत आहार यू लगे सुहाना मन भी चाहे बार बार खाना, लेकिन जहर ये मीठा है हम कब ये समझेंगे? सेहत अपनी ही तो है फिर सम्भाल लेंगे, कहते है कुछ लोग की खाते ये आहार हजार, उनमे से बीमार पड़ते बस कुछ लोग दो चार, तो कह दु तुम्हे ये भूल तुम्हारी पेट समस्या है आम, आदत पड़ गयी बीमारी की इसलिए दिखता नही अंजाम, कब्ज, गैस, सर कमर में दर्द इनसे बचा है कौन? फिर भी तुम ये पूछते हो विकृत आहार से बीमार पड़ता है कौन? जो समस्या एक मे थी आज एक मे बाकी नही रही, योग ने काफी सम्भाला है पर उसमे भी नियमितता बनी नही,