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कवि सम्मेलन

*कवि सम्मेलन* कही दूर खड़े होकर वो देखते है कुछ लोग ऐसे भी होते है जो कवि सम्मेलन से झेंपते है, जाने किस तर्ज पर  प्रस्तुत करते है अपने तर्क, कवि सम्मेलन से भागे दूर ऐसे जैसे सुना हो कही से की कवियों से रहना सतर्क, अब कौन उन्हें बताए? कैसे उन्हें समझाए? की शब्दो के मोती संजोना, एक ड़ोर में उन्हें पिरोना, कोई मोती अनुचित लगे तो फिर विच्छेदन कर पुनः नया संजोना, आसान नही होता, जब तक मन के भाव सटीकता से कागज पर ना बिखरे, कवि की उलझनों का समाधान नही होता, ऐसे साहित्य के रस का संगम बड़ा अनूठा है, कवि सम्मेलन में बैठा हर व्यक्ति जब इस संगम में डूब कर जाता है, वह मंत्रमुग्ध हो जाता है, वह मंत्रमुग्ध हो जाता है......। *पूजा त्रिवेदी ओझा (नूतन पू.त्रि.)*

जिन्दगी

जिंदगी जीने के तरीके ढूंढो नही तो जिंदगी कटने लग जायेगी, आप समझ ही नही पाओगे और जिंदगी छंटने लग जायेगी, माना अकेले आये थे  और अकेले जाना है, पर अपने आप को खुद से  इतना भी न बांधो, की किसी से कोई मतलब नही, गलत बातों से मतलब ना रखो पर बाहर खुलकर सांस लो और जी लो ये अनमोल जिंदगी, क्योकि जाती जिंदगी फिर नही आएगी.....।