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शिक्षा आरम्भ?

समझ नहीं आता आज का समय है कैसा?  शिक्षा में प्रपंच होता शकुनि के जैसा,  कहने को तो शिक्षा आरंभ होती कच्ची उम्र में, घड़े को पकाने की कोशिश, ना चीज को बनाते चीज, यह सब होता है लेकिन समय के थोड़े सब्र में, लेकिन यह सब नहीं जानते, कच्चे घड़े से ही काम मांगते, घड़े में भरेंगे बहुत कुछ ऐसा, जिसका शिक्षा से कोई होगा ना रिश्ता, शिक्षा भी होती है बच्चों की कहा, काम होगा बच्चों का करेंगे माता-पिता, शिक्षा से हटकर हर बात सिखाई जाएगी, अ, आ, इ, ई पूछते हमारी बारी कब आएगी, पैसों से भर दो तुम विद्यालयों की जेब, आपके बच्चे में प्रतिभा नहीं  कहेंगे इसका हमें है खेद, शिक्षा अब सिखाई नहीं जाएगी  बच्चों पर ढोई जाएगी, बच्चों को शिक्षित नहीं  शिक्षा धोने वाला गधा बनाएगी, इन्हीं प्रपंचों के बीच  बच्चों की प्रतिभा खोती है, कागज पर बच्चे बनते जाते शिक्षित  पर वास्तव में शिक्षा आरंभ ही नहीं होती है......।

मायका

बचपन, जवानी, बुढ़ापा,  तीनों समय के अलग है खेल, पर बचपन की बात निराली  नहीं किसी से मेल, पत्नी, मां फिर दादी, नानी  हर पद पर वो चढ़ती है, लेकिन वह घर जहां बचपन बीता  याद वो तब भी करती है, माँ के घर से मायका  जो पीहर भी कहलाए, हर रिश्ते की अलग कहानी  बचपन याद दिलाएं, चाहे जितना भी बीते समय पर  मायका शब्द सलोना, जुबां पर आए जब कभी भी लगे पुकारता वहां का हर एक कोना......।