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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिंदी के कुछ स्तम्भ, जिनमे एक थे मुंशीजी और एक है हम

मुंशी प्रेमचंद जी के नाम से ही कितने किस्से ताजा हो जाते है, यादो की गाड़ी पलट जाती और हम अपने विद्यालय पहुँच जाते है, हिंदी साहित्य जिनके लेखन से भरा है, इनका नाम तो बड़ा है ही पर इनका व्यक्तित्व भी गहरा है, पूस की रात, बूढी दादी, गौदान जैसी सामाजिक घटनाओं का किया चिंतन, कई श्रेष्ठ रचनाएँ रची जिनमे मुख्य है पंच परमेश्वर, मंत्र, नशा और गबन, ऐसे लेखकों की महानता व हमारे जीवन में हिंदी साहित्य का व हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद जी का महत्च हमे तब कहा समझ आता था, तब तो बस कुछ रचनाएं सामान्य सा जीवन परिचय और हिंदी साहित्य में लेखकों का थोड़ा योगदान समझकर बस एक रट्टा लगाना होता था, बस किसी तरह थोड़ा बहुत लिखकर पास हो जाये, और परीक्षा होते ही सब कुछ भूल जाये, ये तो हुई हमारी पीढ़ी की बात, पर हमसे पहले की पीढ़ियों को होता था काफी कुछ याद, फिर बात करे उससे पहले की पीढ़ी की तो उन्होंने तो हिंदी साहित्य में जी जान लगाकर दी हिंदी साहित्य को सम्मान भरी सौगात, कहने का तात्पर्य यह है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी घटते चले आ रहे है, अपनी मातृभाषा का साहित्य रटते चले आ रहे है, और अब

काबिल

जीवन सरपट भागे लेकिन कुछ एहसास जरूरी है, जीवन में सफलता हो पर कुछ का विश्वास जरूरी है, हो विश्वास तो कुछ कर जाना इतना भी मुश्किल नही, शून्य बनकर रह जाए हम इतने नाकाबिल नही। 😊😊

भीड़ से अलग

आप भीड़ से अलग सोचते हो इसीलिए लोग आपको पागल समझते है 😡😡 समझने दो 😇😇 आप अलग राह पर चलते हो इसीलिए हँसते है 😆😆👉👉😡 हँसने दो 😇😇😇 बेवकूफ कहते है 😡😡😡 कहने दो 😇😇 वो क्या है ना भीड़ के पीछे चलने वाले कुएँ में भी कूद जाते है यह सोचकर की शायद कुएँ में कामयाबी होगी तभी इतने लोग कुएँ में कूद रहे है 😆😆😆👆👆 लेकिन जो अलग किन्तु उचित राह चुनता है वो एक दिन तमाम भीड़ को अपने पीछे लाने की ताकत रखता है 💪😇💪 क्योकि भीड़ के पीछे चलने वाले लोग कामयाबी के पीछे आँख बन्दकर भागते है लेकिन खुद कामयाब नही हो पाते कामयाब वो लोग होते है जो अलग किन्तु उचित राह चुनते है 😇😇

लघुकथा- सत्य का ज्ञान

*"सत्य का ज्ञान"* "आज हम होटल जाएंगे" "आज हम होटल जाएंगे" बच्चे बहुत खुश है क्योंकि आज महीने का वह दिन है जब दादाजी "केशव जी" अपने पूरे परिवार को होटल खाने पर ले जाते है महीने में बस एक दिन। होटल पहुँचते है। खाना ऑर्डर करते है। फिर जब वेटर खाना लेकर आता है तब ये क्या??? केशवजी अचानक भौचक्के से खड़े हो जाते है कुछ ही पल बीतते है कि अश्रुधारा बहने लगती है परिवार के सदस्य कुछ कहे उससे पहले ही वो वेटर और केशवजी गले मिलकर रोने लगते है। सभी आश्चर्यचकित से उन्हें देखते है और फिर बच्चे पूछते है दादाजी ये कौन है? केशवजी कहते है - ये मेरे बचपन का यार है इसका नाम है "माधव" बच्चे फिर आश्चर्य से पूछते है! ये आपके बचपन के यार कैसे हो सकते है? ये तो कितने बूढ़े है और आप तो कितने जवान हो। बच्चों इसका कारण में आपको बताता हूँ, "माधवजी ठक्क से मुस्कुराते हुए बोले" दरअसल जब हम गाँव से शहर की और बढ़े थे। तब हम दोनों के बीच अलग सोच की एक दिवार खड़ी हो गयी थी और हम दोनों ही अपनी सोच को सही ठहराने में लगे रहते थे। एक दूसरे से कहते रहते थे की एक

गुरुज्ञान का महत्व

गुरुदेव की महिमा का गुणगान हो जहाँ पर वो स्थान ईश्वर को प्रिय हो जाते है, ईश्वर से बड़ा इस जग में ना कोई है पर गुरु ही है वो जो ईश्वर को भी सिखलाते है, हमारी कलम गुरुदेव की महिमा का बखान करे प्रभु की कृपा है जो वो हम पर बरसाते है, क्योकि गुरुदेव के ज्ञान में तो ब्रह्माण्ड समाता है हम उनका गुणगान अपने शब्दों में सुनाते है और गुरुदेव का सम्मान होता है जहाँ पर प्रभु भी हमारे वहाँ पर खिंचे चले आते है। तीर वाले रामजी या बंशी वाले श्यामजी या हम इंसानो के आधुनिक विज्ञान की ही बात हो, गुरु के बिना ये जीवन बेजान हमारा जब तक जीवन की महत्ता का ना ज्ञान हमे ज्ञात हो, लाखो लोग अंधकार में यु ही टकरा रहे है फर्क इससे पड़ता नही चाहे लाखो साथ हो, जुगनू जितना ज्ञान भी पकड़ में यदि आ जाये तो ले जाएगा वहाँ जहाँ अथाह प्रकाश हो, गुरुज्ञान सिखलाना जरूरी आज की पीढ़ी को है व्हाट्सअप जिनका गुरु सोशल मिडिया जिनके साथ हो, व्हाट्सअप का ज्ञान स्वच्छ ना ही पूरी तरह सत्य है जिसकी ऊँगली थामोगे तो आगे चल विनाश हो, गुरु का चयन भी कोई बच्चों का है खेल नही श्रेष्ठ गुरु चुन सको अगर दिमाग आपके पास हो, और

यादे

उम्र गुजर जाती है, वक्त बीत जाता है, अच्छा तो बुरा कभी जीवन कट जाता है, लेकिन इस वक़्त ने जो धूमिल कर दी यादे, रोशन होती साथी जब पुराना मिल जाता है ☺☺☺