संजा माता
भविष्य की एक बात बताऊँ ये जब होने वाला है, एक था त्यौहार संजा माता ये कहलाने वाला है, कितना अच्छा प्यारा त्यौहार हम क्यों खोते जा रहे? संजा माँ के गीत छोड़कर जाने कौन से गा रहे? गोबर से कागज तक तो माँ पहले से ही पहुँच चुकी, अब इतना भी आँखों से लगता ओझल होने वाला है, गोबर की संजा का महत्व तुम क्या जानो छोरियां, जो उम्र से पहले बड़ी हो गयी बचपन की छोड़ी डोरियाँ, फीकी, मीठी, खट्टी, तीखी, बोलो कौन सी है परी, लेकिन अब ये खेल नही बीत गयी वो सुहानी घड़ी, त्योहारों का महत्व अब मनोरंजन जितना रह गया मनोरंजन के प्रति सभी का नजरिया भी तो बदल गया, जब तक ढोल धमाका झगमग इनको ना लुभाएगी, उस त्यौहार की रीत तो फिर इतिहास ही बन जायेगी, परंपराओं को नाम दे दिया ये तो है रूढ़िवादी, जो फैशन के साथ ना चली वो परम्परा अब ना रही, दिख ही रहा है छोड़ संस्कृति कितना खुश तुम रहते हो, त्योहारों के रंग नही तुम उसको जीवन कहते हो।