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संजा माता

भविष्य की एक बात बताऊँ ये जब होने वाला है, एक था त्यौहार संजा माता ये कहलाने वाला है, कितना अच्छा प्यारा त्यौहार हम क्यों खोते जा रहे? संजा माँ के गीत छोड़कर जाने कौन से गा रहे? गोबर से कागज तक तो माँ पहले से ही पहुँच चुकी, अब इतना भी आँखों से लगता ओझल होने वाला है, गोबर की संजा का महत्व तुम क्या जानो छोरियां, जो उम्र से पहले बड़ी हो गयी बचपन की छोड़ी डोरियाँ, फीकी, मीठी, खट्टी, तीखी, बोलो कौन सी है परी, लेकिन अब ये खेल नही बीत गयी वो सुहानी घड़ी, त्योहारों का महत्व अब मनोरंजन जितना रह गया मनोरंजन के प्रति सभी का नजरिया भी तो बदल गया, जब तक ढोल धमाका झगमग इनको ना लुभाएगी, उस त्यौहार की रीत तो फिर इतिहास ही बन जायेगी, परंपराओं को नाम दे दिया ये तो है रूढ़िवादी, जो फैशन के साथ ना चली वो परम्परा अब ना रही, दिख ही रहा है छोड़ संस्कृति कितना खुश तुम रहते हो, त्योहारों के रंग नही तुम उसको जीवन कहते हो।

ब्राह्मण की लड़की हूँ

ब्राह्मण की लड़की हूँ, घमंड नही पर गर्व जरूर करती हूँ, अपनी संस्कृति अपनाने में ना शर्माती हूँ और ना ही उस पर इतराती हूँ, ब्राह्मण का कर्तव्य है  सीखना और सिखाना बस यही कोशिश तो करती हूं, अब जिसे लगे ये अकड़ या गुरुर है, वो अभी ब्राह्मण को समझने में काफी दूर है। ☺☺🙏🏻🙏🏻

डूब का दर्द

देखो तो देखो क्या गजब हो गया, इंसान का दर्द बस अख़बार में बस गया, कही बरसाती झड़ियाँ आई तो कही हुआ त्राहिमाम, बाप रे ये क्या हो गया बस इतना कहकर हुआ काम तमाम, ना किसी को कुछ फर्क पड़ता है ना किसी की कोई अड़ी है, पीड़ितो को कोई मदद नही इंसानियत तो कही कोने में पड़ी है, बड़ी बड़ी खबर बनाना है सबको वो ढूंढते है नजारे, हर जगह की गिनती लगाते की बाढ़ ने कहा कितने मारे? जितनी संख्या ज्यादा होगी उतनी होगी टी आर पी, ऐसी सोच रखने वालों की तो उतारनी चाहिए आरती, मानते है कि अख़बार, टीवी जरिया है मध्यस्थता का, पर खबर पर ही ध्यान देना इससे बुरा और क्या होगा? लोग भी तो मजे लेने को सारी खबरे पढ़ते है, फिर बाद में मिल बैठकर गपशप सारी करते है, घोटाले पर घोटाले देख कर मन दुःखता है, पीड़ितो से उनका मुआवजा तक छीन लेते ऐसे लोगो पर बाढ़ का पानी क्यों नही टूटता है? खबरों को पढ़ पढ़कर तो हर किसी का दिल दहकता है, पर बाढ़ पीड़ितों पर क्या बीत रही उनका दर्द कोई नही समझता है, कोई नही समझता है!

शिक्षक

शिक्षक, आंतरिक सुंदरता व जीवन की भव्यता का निर्माता है, वह हर क्षेत्र के ज्ञान का ज्ञाता है, वैज्ञानिक हो, चिकित्सक हो या हो कोई इंजीनियर सभी वही तो बनाता है, फिर भी कभी घमंड नही दिखाता है, साधारण से दिखने वाले, सादगी से जीने वाले, बड़ी बड़ी समस्याओ को चंद पलों में सुलझा जाते है, ऐसी जीवंत कला के कलाकार शिक्षक ही तो कहलाते है, जो ना कभी थकते है, शिक्षा के मंदिर में ज्ञान भरपूर परोसते है, निःस्वार्थ भाव से अपने ज्ञान का धन कई मजबूत नींव बनाने में लुटाते है, ऐसे दानवीर शिक्षक ही तो कहलाते है, पर एक सच्चाई और भी है, ऐसे सच्चे शिक्षक आजकल कहाँ दिखे? खेर पर इससे शिक्षक की परिभाषा बदल ना जाती है, शिक्षक की परिभाषा तो सुनहरे शब्दो में लिखी जाती है, अब जो शिक्षक के इन गुणों पर खरे उतरते है, वो शिक्षक कहलाते है, बाकि तो नोकरी करते है और तनख्वाह लेकर घर लौट आते है। *सभी को शिक्षक दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ।*