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लघुकथा- ताकत

दो व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे... पहला बोला- यार मुझे आम बहुत पसंद है लेकिन आम गर्मी में ही क्यों आते हैं????? तो दूसरा आसमान की तरफ उंगली दिखा कर बोला-  बेटे हमारे पास टेक्नोलॉजी कि वो ताकत है जिससे हम प्रकृति को बदल सकते हैं और 12 महीने आम खा सकते हैं....। इतने में ही जोर की बिजली कड़की और झमाझम बारिश होने लगी।   पहला बोला- बिन मौसम बरसात यार कैसे और क्यो???  इतने में दो बड़े-बड़े ओले उनके सिर पर गिरे और आवाज आई - "बेटे तुमने मेरी तरफ उंगली दिखा कर ताकत की बात की तो सोचा मैं भी तुम्हें अपनी ताकत दिखा ही दूं...। संदेश-  इंसान टेक्नोलॉजी के नाम पर इतरा कर जो प्रकृति से टक्कर ले रहा है ना... यह भविष्य में बहुत भारी पड़ेगा क्योंकि प्रकृति और भगवान से बड़ी ताकत ना थी, ना है और ना होगी।

कभी कभी लगता है.....

कभी कभी लगता है  की इस दुनिया में अच्छा होना भी बहुत बुरा है... पर एक बात कहु अगर ये सोचकर सबने अच्छा बनने की  कोशिश छोड़ दी ना तो जो होगा इससे कही ज्यादा बुरा होगा... इसलिए दुनिया चाहे हँसे या पागल समझे पर यदि आप गलत नही तो झिझकना बन्द करो की "लोग क्या कहते है???"

विज्ञान....

किसी को कहते सुना की आज विज्ञान के कारण हमें बड़ी बड़ी बीमारियों का पता चला वरना पहले के लोग तो जान ही नही पाते थे। तो एक बात समझ में नही आयी की पहले के लोग जब जानते नही थे फिर भी 90 से 100 साल हष्ट पुष्ट जी जाते थे और आज की हालत तो आप जानते ही है। आज विज्ञान ने बीमारियों का पता तो लगाया पर ये बीमारियां क्यों हो रही है इसके बारे में पता नही लगाया? या यु कहु इन बीमारियों का फिर वह छोटी हो या बड़ी उनका कारण भी विज्ञान ही है। आज हम चाँद तक तो पहुँच गये पर ये भूल गए की हम रहते तो पृथ्वी पर है जहाँ हवा में उड़ना सम्भव नही फिर वह शारीरिक तौर पर हो या मानसिक तौर पर।  हमने तरक्की के नाम पर अपनी आदते इस हद तक बिगाड़ ली है कि अब उन्हें सुधारना हमारे स्वयं के वश में भी नही रहा। विज्ञान की तरक्की के नाम पर हम अपनी आँखों में चकाचौन्ध बढ़ाते जा रहे है और देखना भूल रहे है की उस चकाचौन्ध के पीछे का अँधियारा हमारे जीवन को घेर रहा है, वह जीवन जिसके पीछे ही हम है।  विज्ञान की तरक्की गलत है मैं यह नही कहती क्योकि मैं भी नवीनता (crativity) में विश्वास रखती हूँ किन्तु नवीनता में हम इतने भी ना खो जाए की हमारा भविष

कैसे ये शौक???

शौक हमारे खुनी है कातिल, पापी, हत्यारे है, ऐसे शौक जो उचित नही बस वही तो हमको प्यारे है, अपने शौक के खातिर हमने  जानवरो को मार दिया, बेफिजूल की जरूरतों पर जंगल का जंगल उजाड़ दिया, थोड़ी भी लज्जा, शर्म अब हममे बाकि नही रही, बिल्डिंगे खूब खड़ी हुई पर खेत दिखाई दे कही नही, मस्ती के गुलछर्रो में हम तनिक भर ना सम्भल रहे, देख देख बेशर्मी हमारी ईश्वर लज्जित हो रहे, प्रकृति भी कलप रही ईश्वर ये कहाँ मुझे छोड़ दिया? इन इंसानो ने मेरे  वजूद को ही निचोड़ दिया, ईश्वर बोले मैं भी हूँ शर्मिंदा अपनी रचना पर, अब तो बस तुम दिखा ही दो प्रकोप इन इंसानो पर, शुरू कर रही प्रकृति भी प्रकोप उसका झेलना है, कम है अभी तो समझ ले हम हमे गिरने से सम्भलना है, एक बार जो समय गया ये इससे बुरा अब आएगा, पता नही वो कौन सा जादू इंसानों को समझायेगा....।