कौन सूखी, कौन दु:खी
खुद तो कभी सुधर ना सके पर बात करे जमाने की, औरो के सपने जो छिने बात करे अरमानो की, ख्वाबो की दुनिया भी देखो कितनो की है उजड गयी, खुशियाँ द्वारे कितनो के आते आते लौट गयी, उनकी दुनिया अलग ही होती कोई दखल ना देता है, कोई ना चाहे देखना जाने वह कैसे सोता है, चेहरे उनके देख के देखो जिनके तन पर कपडे नही, पर चेहरे पर ढुंढ के देखो दिखती है क्या सिकंज कही, दुख को कैसे खुशी बनाए तरकीब खूब ये आती है, पर तुम्हारी खुशियाँ कैसी चिंता साथ में लाती है, एैसे मे मैं समझ ना पाऊँ कौन सुखी और दु:खी है कौन, जिसने दु:ख को खुशी बनाया या जिसने चिंता का लिया है लोन, पर अमीरो सा पैसा है ईश्वर देना चाहे ना देना, पर हो दिल गरीबो सा इतना उपकार दिखा देना, दया , करूणा , अपनापन इंसान के गुण होते है यही, और कुछ मैं बनूँ ना बनूँ अच्छा इंसान बना देना ।