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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपना कुक्षी

आज दिनांक २८ मई सन है २०२०, दुकान खुलने की छूट मिली जब मिली क़ुक्षी को जीत, कोरोना से जंग छिड़ी थी लेकिन कुक्षी जीत गया, संयम रखना, स्थिर रहना हमारा कुक्षी सीख गया, जो सड़कें थी अब तक मौन थोड़ी थोड़ी चहक रही, पर धड़ल्ले से भागना नही मिली है छूट जो कीमती बड़ी, हँसते और मुस्कुराते से चेहरे बाहर दिखते है, भाव को समझो तो क्या हुआ? जो मास्क के पीछे छिपते है, कहते है कुछ लोग ये लॉक डाउन इतना भी था बुरा नही, दिनचर्या भी सुधर रही और जीवन की कई सीख मिली, झटका-झटकी शुरू हुई दुकानें थी जो अब तक बन्द, संयम रखो जरूरी है जो अभी रहे सब धंधे मंद, खुल रही दुकानें लेकिन सुरक्षा करना पूरी है, लेन-देन तो होगा लेकिन दुरी बहुत जरूरी है, अशांत था मस्तिष्क आपका बाहर आकर शांत हुआ, लेकिन यह भूलना नही कोरोना से देश अभी बंधा हुआ, व्यर्थ में पैसा बहाना नही तुम खर्चो जितनी जरूरत हो, यह बात बस अभी नही जीवन भर खुद को समझाते रहो, *सम्भलकर रहना, सुरक्षित रहना* *यही देती हूँ शुभकामनाएँ* *ईश्वर से विनती है यही* *कुक्षी में अब कोई केस ना आये* *और सारी दुनिया कोरोना से* *जल्द से जल्द मुक्त हो जाये* *नूतन पू.त्रि.*

माँ

एक माँ जो मेरी जननी है, एक माँ जो भाषा हिंदी है, एक माँ जो सारे जगत की माँ, एक माँ जो मेरी संस्कृति है, माँ गंगा इतनी शीतल है, हर नदी जो इतनी पावन है, माँ भारती बसी है कण-कण में, माँ के प्रेम से सजा यह जीवन है

टेक्निकल माँ

आज जब टेक्नोलॉजी से सभी का जीवन आसान है, तो फिर माँ अकेली क्यों ममता तले परेशान रहे? बच्चों को संभालना अब तो बाएँ हाथ का खेल है, टेक्नोलॉजी से बच्चों का बस करवाना मेल जोल है, अब समय वो कहा रहा जब थाली लेकर माँ भागे, मोबाइल, टीवी चालू कर क्षण भर में काम यह निपटा दे, धूल में लिपटकर गंदे होकर अब बच्चे कहा आते है? घर में ही मोबाइल चलाकर ऊर्जा को बचाते है, अब ना सताना, ना तड़पाना, ना गिरना, ना चोट लगाना, बचपने पर हावी मोबाइल अब ना कोई शरारत करना, पागल थी वो माएँ जो  बच्चों के पीछे दिनभर पिसती, आज की माँ से सीखो कैसे मोबाइल थमाकर आराम करती, एक छोटी सी चीज है जो हर काम माँ का निपटा देती, अच्छा ही सब मानो जो यह टेक्नोलॉजी सीखा देती, संस्कारो की जरूरत क्या? सेहत का क्या काम? बड़े तो यु भी हो जायेंगे दवाईयाँ होगी आम, त्याग, समर्पण थी जो सूरत स्वार्थी मूरत हो गयी, ममतामयी जो माँ होती थी टेक्निकल अब हो गयी....। माफ़ करना जो बुरा लगे तो लेकिन सच जो दिखे यहाँ, कैसे हो बर्दाश्त जो लापरवाही में बच्चों का भविष्य ढहा....।

गृहणियों को समर्पित

*क्या आप गृहणी हो???* "हां" *क्या आप घर की सारी जिम्मेदारियाँ निभाती हो???* "हाँ" *क्या आप स्त्रियों की इन जिम्मेदारियों को मजबूरी मानती हो???* "हाँ" *अरे !*  ये क्या बात करती हो? गृहणी के कार्यो को मजबूरी कहती हो!! लेकिन क्यों? क्योकि दुनिया के सामने जब कहो की तुम एक गृहणी हो तो वो तुम्हे साधारण समझते है इसीलिए??? तो तुम्हारे भीतर यह क्षमता नही की तुम उन्हें यह बता सको की सफल गृहणी होना कोई साधारण बात नही। गृहणी होने में बुराई क्या है? यदि आपको यह लगता है कि गृहणी की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्री ही क्यों निभाए पुरुष क्यों नही? तो ऐसा है जिम्मेदारी कोई खिलौना नही जो किसी भी बच्चे को थमा दे, वह घर की महत्वपूर्ण डोर है जो उसी को थमाई जा सकती है जो उसके काबिल हो। आप गृहणी होने पर स्वयं को दूसरों से कम क्यों आंकती हो? ऐसा नही है कि गृहणी होने का मतलब है अपनी सारी इच्छाओं को मार देना बस थोड़ा संतुलन बिठाना होता है और यह तो पुरुष भी करते है क्योकि परिवार की जिम्मेदारी तो उन पर भी आती है। देखो ऐसा है स्त्रियां घर का काम करे और पुरुष बाहर का यह इसलिए नही किया गया कि स्त

माता - पिता

हमारे प्रेम का बखान निःशब्द है पर फिर भी लिखना चाहती हूँ, आपके आशीर्वाद तले  जीवन भर जीना चाहती हूँ, आप दोनों का स्नेह  मेरे जीवन की प्रीत है, आप मुझ पर गर्व करो बस वही तो मेरी जीत है, आपने अपनी खुशियों से  मेरा जीवन सँवारा है, दुःख भी दुःख कभी लगे नही आपका प्रेम ही इतना प्यारा है, आपके चरणों में ही अपना  स्वर्ग में पाती हूँ, मेरे पहले ईश्वर हो आप  आपके चरणों में सर झुकाती हूँ

लघुकथा- उपहार

8 साल का टिंकू कई दिनों के बाद अपने पापा के साथ बाहर जा रहा है....। "अरे पापा जल्दी चलो ना" "हाँ बेटा बस आ गया, लो फटाफट ये मास्क पहन लो" "पर पापा अब तो कोरोना नही है ना" "हाँ बेटा पर मास्क की आदत डाल ही लो क्योकि कोरोना हो न हो पर प्रदूषण तो बढ़ने ही वाला है।" "पापा मास्क में मेरा दम घुट रहा है, इसे निकाल दूँ..?" "अरे बेटा......" "हाँ ठीक है पता है आप हर बार की तरह यही बोलोगे की मैं तुम्हारी उम्र का था तो मैं भी तो पहनता था।" "नही बेटा, मैने बचपन में मास्क नही पहना हमारे समय तो वातावरण बहुत शुद्ध था, चारो और ताजी हवा होती थी।" "टिंकू उदास होकर बोला- तो पापा हमारे साथ ये चीटिंग किसने और क्यों की?" "पिता निःशब्द......" "बेटा फिर पूछता है, पापा बताओ ना......" "पिता बोलते है हमे माफ़ कर दो बेटा तुम्हारे साथ ये चीटिंग हमने ही की है हमे तो एक बढ़िया दुनिया मिली थी हमने तरक्की के आवेश में इसे खराब करके तुम्हे दे दी....(पिता उदास हो जाते है)" "बेटा बोला-  कोई बात नही पापा

पहनावे की आजादी- लेख

*वस्त्रों की मर्यादा व बंदिश में अंतर समझना अति आवश्यक है।* देश की आजादी के बाद स्त्रियों की आजादी की कहानी शुरू होती है....। जो पर्दा प्रथा से शुरू होकर जीन्स टॉप तक पहुँच चुकी है लेकिन कारवाँ अब भी जारी है....। आजकल स्त्रियों के लिए आजादी का मतलब बस अपने पसन्द के कपड़े पहनने जितना ही रह गया है। जिसके लिए अत्याचार, हम अबला नही है, तरक्की में रूकावट जैसे बहाने दिए जाते है जो की सारे निरर्थक है।  अभी कुछ दिन पहले एक मैसेज आया- *की कोई जीन्स पहनकर भी सम्मान देती है तो कोई घूंघट में भी गाली देती है।*    अब यहाँ दो अलग अलग बातों को जोड़ दिया, पहनावा और तमीज..। अरे! कपड़े कोई जादू की छड़ी है क्या जो पहना और सीरत बदल गयी? हाँ काफी हद तक कपड़ो का प्रभाव पड़ता है पर वो भी आपकी सोच अनुसार क्योकि कपड़े पूरा व्यक्तित्व नही अपितु व्यक्तित्व का एक हिस्सा है।  ऐसे तो मैं भी कह दूँ *की हमने मर्यादा में रहकर भी स्त्री को परिवार का नाम रोशन करते देखा है व पूरी आजादी मिलने के बाद भी परिवार को कोर्ट में घसीटते देखा है।*  कहने का मतलब यह की स्त्रियों का पहनावा जो दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है असल में वो कोई आ

कोरोना काल- कठिन समय

आज देश जो गुजर रहा है बड़े ही मुश्किल दौर से, ऐसे में कुछ लोग लगे है देश की हालत तोड़ने, कठिन समय है साथ मांगता नही तुम्हारे ताने, लेकिन कुछ लोग लगे हुए है देश के उद्योग गिराने, देश विदेश की बात नही  यहाँ समय समय की बात है, विदेशो से दुश्मनी नही यहाँ देश के लिए जस्बात है, अब तक जो मजदूरों की हालत पर अश्रु लिए बैठे, पर मोदी ने कहा बस इसीलिए देशी उद्योग से यु ऐंठे, देशी चीजे हम ना खरीदे तो उद्योग बचेंगे कैसे? उन उद्योग में लाखों मजदुर अपना पेट भरेंगे कैसे? क्या हो जायेगा अगर जो तुम देशी चीज खरीद लोगे, चलो मांगती विदेशी  श्रेष्ठ गुणवत्ता का सबूत दोगे? लेकर भी गर आ जाओ तो देशी हमको प्यारा है, देश हमारा घर है और घर का उद्योग हमारा है, कारण नही जो करे बहिष्कार हम उद्योग विदेशी का, लेकिन जब तक उपलब्ध है उपयोग क्यों नही देशी का? लगे जरूरी तब तो खरीदे विदेशी उसमे खोट नही, बस इतना रखना ध्यान  ना पड़ जाये देश के उद्योगों को चोट कही, बाकि तुम तो वही करोगे जो भी तुमको करना है, पर देश के प्रति फर्ज हमारा हमको पूरा करना है.....।

कवि

लेखन कमाई का जरिया नही  अंदाज है, कविता लिखी जाती है जब मन में ठहरते साज है, युही बिखेर देते है हम कवि लोगो में अपना खजाना, श्रोता बस सुनने को उमड़ पड़े वही हमारे लिए ताज है.....। ☺☺☺☺☺☺ क्या आपमें भी कवियों वाला अंदाज है.......??????

मातृ दिवस

जो कहते है हमने कभी भगवान को नही देखा, तो क्या कभी उन्होंने अपनी माँ को नही देखा? चाहे मिल जाये सुख सारी दुनिया के, पर वो सुख असीम है जब सर हो माँ की गोद में, कद्र करते जो माँ के अनुपम स्नेह की, उनके मन में तो वर्षभर ही मातृ दिवस की उमंग भरी....।

कैसी ये दिवानगी?

कैसी ये दिवानगी? ईश्क, मोहब्बत की परिभाषा आज जो है वो सही नही, आकर्षण को प्रेम कहे यह बात हमे कुछ जमी नही, कैसी ये दिवानगी है? कैसा ये दिवानापन? एक से जब कोई बात न बने दूजे पर ठहरता है मन, प्रेम अगर तुम जानना चाहो रामायण खोलो और पढ़ो, पतिव्रता वो नारी थी श्रीराम जी जैसा चरित्र हो, इक्की, दुक्की प्यार की बाते कहना ही बस प्रेम नही, वास्तविक प्रेम की खोज एक बार तुम करो सही, ज्ञात तुम्हे हो जायेगा  की आज तो सब छलावा है, असल प्रेम तो हमारे साथ माता-पिता ने निभाया है.....।

कहाँ मिला सुकून...?

ना प्रतिभा में मिला, ना प्रतिष्ठा में मिला, ना ऐश में मिला, ना धन में मिला, जिस सुकून की तलाश  थी चारो और, वह और कही नही अंतर्मन में मिला......। ☺☺☺☺☺☺

शहीद जवान

एक दृश्य सामने आँखों के जहाँ शहादत पर है आँखे नम, अभी तीन महीने पहले ही भरी थी मांग और पहना कंगन, ना कुछ उसको कहना है  शब्द नही है मन है मौन, 3 महीने में पति खो दिया उसका दर्द समझे कौन? पाकिस्तान तो नही बचेगा कीमत भी चुकायेगा, पर कब तक जीवन उजड़ेंगे यह सिलसिला कब रूक पाएगा.....।

संस्मरण- बुजुर्गों का मान

एक बार हमारे घर पर केरी का अचार डल रहा था जो माँ डाल रहे थे तब वो हर चीज़ की मात्रा अगले कमरे में बैठे दादीजी को दिखाने जाते की यह इतना लू ठीक रहेगा ना... यह देखकर में फुस्स से हँस पड़ी और बोली माँ आपको इतने साल हो गए अचार डालते पर अभी तक आपको याद नही हुआ की कौन सी चीज कितनी डलेगी.....।  तब माँ ने कहा- *"ऐसा नही है कि मुझे पता नही पर दादीजी से इसीलिए पूछती हूँ ताकि उन्हें यह एहसास रहे की बुजुर्ग होने पर भी हमारे लिए उनका मूल्य वही है जो पहले था.....।"* यह वो सीख थी जिसका तरीका साधारण था लेकिन मूल्य कही ज्यादा कीमती था।

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