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अच्छा बनने की कोशिश

झूठ कहुँ तो कहना आपको पता है जब कोई इंसान अच्छा बनने की कोशिश करता है तो लोग कुछ इस प्रकार के शब्दों से उसका मनोबल घटाते है।👇👇👇 १) ज्यादा अच्छा बनने की जरूरत नही। (अरे अच्छा बनने की जरूरत क्यों नही और अच्छा बनने की जरूरत तो सबसे पहले स्वयं के लिए है बाद में दुसरो के लिए।) २) समझो..... दुनिया में अच्छे लोगो की कीमत नही होती। (अच्छा तो आज की दुनिया को देखो क्या वो किसी डॉन या बुरे व्यक्ति का सम्मान करती है। सम्मान तो स्वामी विवेकानंदजी जैसे महापुरुषो का होता है जो अच्छे थे।) ३) जो जैसा है उसके साथ वैसा ही करो। (नही जो सही है वही करना चाहिए क्योंकि बुरे को बुरा ही देने से हम इसके आदि हो जाते है और फिर अच्छे को भी बुरा देने लगते है इसीलिए जो उचित हो वही करो) ४) सभी गलत कर रहे तो तुम क्यों महान बनते हो...। (पहली बात तो यहाँ महान बनने की बात नही क्योकि महानता का पद तो दुनिया देती है हमे तो बस अच्छा बनना है और दूसरी बात दुनिया बेवकूफ तो क्या हम भी बेवकूफ बने।) ५) खुद फ़टी चादर में सोते हो और दूसरों को कम्बल बाटते हो....। (तो बात ऐसी है की अपनी ऊँची चादर भी हमे फ़टी इसीलिए नजर आती

बिन मौसम बरसात

मित्रो जरा आसमान तो देखो किस तरह काले बादलों से छाया है गर्मी का मौसम है अभी तो ये बिन मौसम बरसात लाया है लोगो को कहते सुना की प्रकृति भी कहर बरपा रही है क्यों बेदर्द बनकर हमे तड़पा रही है जहाँ सूखा है वहाँ पर जाकर बरसो ना ऐसे बिन मौसम बरसना तुम्हे शोभा देता है क्या प्रकृति भी नियम तोड़कर अंधाधुंध चले जा रही है ना जाने क्यों ये बिन मौसम बरसात ला रही है लोगो की यही बाते सोच रही थी की तभी सनसनाता एक झोंका आया साथ में अपने कुछ टूटे फूटे बिखरे बिखरे शब्द लाया उन शब्दों को जोड़ा तो पढ़कर मैं हैरान हूँ बताती हूँ आपको की क्यों इतनी परेशान हूँ की कहती है प्रकृति खुद को बक्श दे ऐ मानव क्यों स्वयं के लिए ही बन बैठा है दानव मुझे चोट देकर तू भी क्या बच पायेगा भविष्य में तू मुझे नही स्वयं को तड़पायेगा आज मुझे बेदर्द कहता है छोटा सा कहर ही बरपा जो जंगल , खेत नष्ट किये जरा उसका हिसाब लगाना तो अपनी प्रगति के पीछे तू पागल बन इतरा रहा चकाचोंध से आँखे फेर देख तू किस दलदल में जा रहा अभी तो बेटा शुरुआत ही है आगे आगे देख होता है क्या ना ना ना मुझे जिम्मेदार ना ठहरा इसका कारण तू

जलियांवाला बाग हत्याकांड

जलियांवाला बाग की घटना आत्मा को झकझोर दे, फिरंगियों की ओछी हरकत इंसानियत को छोड़ दे, एक सभा थी आजादी की लाखों लोग जमा हुए, कुछ पल में ही अंग्रेजो की बेदर्दी में समा गए, गोली, बारूद ऐसे बरसे जैसे आई सुनामी, लाशों का एक ढेर लगा लोग हुए सब छन्नी, 13 अप्रेल 1919 के दिन की यह बात है, आज उस घटना को 100 वर्ष बीत गए, अंग्रेजो की बर्बरता का शिकार हुए वो मासूम, आज भी वहाँ उपस्थित है उन भारतीयों का खून, आजाद भारत के हम वासी अब भी अश्रुपूर्ण है, शहीद हुए उन शहीदों को हृदय से श्रद्धांजलि दे।

संवत २०७५ का अंतिम दिन

* संवत २०७५ का अंतिम दिन * वर्ष का है अंतिम दिन संवत २०७५, हृदय की गहराइयों से देना मेरे प्रश्न का उत्तर, कभी दुखाया दिल तुम्हारा इस वर्ष क्या मैने, क्षमा याचना करती हूँ यदि हो उत्तर हाँ में, नववर्ष है प्रारंभ कल से नया सवेरा होगा, शुभचिंतक हूँ सलाह दूंगी प्रारंभ कर दो योगा, जो बिता सो बीत गया पर अब ना गलती करेंगे, कोशिश करेंगे, आगे बढ़ेंगे पर ना किसी से जलेंगे, हमारा भविष्य तो हमे है बुनना, अच्छाई है चुनना, बुरा नही हम सोचेंगे और सदवाक्य है सुनना, अपनी भाषा, संस्कृति है भारत की पहचान, भारत माँ की उम्मीदों का रखना थोड़ा मान, स्वच्छता से देश सजेगा, स्वस्थ भारत बनेगा, बेईमानो पर काल घिरेगा और आतंक थमेगा, कुछ आशाएँ, कुछ उम्मीदे आज बांधकर सोएंगे, खुदसे करते है यह वादा मुश्किल में ना रोयेंगे, नववर्ष में कोशिश होगी, हिम्मत, जोश बढ़ाएंगे, खुद में बदलाव के वादे कर नववर्ष मनाएंगे। 😊😊 * नूतन पू.त्रि. * 😊😊