संदेश

मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सरकार...लायक या नालायक?

*सरकार...लायक या नालायक?* सरकार नहीं तुम लायक हो  तुम तो पूरी नालायक हो,  देश से तुम्हें फर्क ही क्या तुम एक जाति की सहायक हो,  बस एक जाती को बढ़ाना है  उतना ही तुम्हारा मकसद, फिर हो चाहे घाटे का सौदा लगे कितनी ही कीमत,  तुम 40% वालों को  थमा देते हो हर पद, और 90% वालों को  नहीं समझते बेहतर, मरीजों की तुम जान थमा दो  उन लोगों के हाथ  जिन्हें जान बचाना आता नहीं बस चाहे डॉ के ठाट, बच्चों के तुम भविष्य से खेलो  करते ऐसी हरकत, जो खुद शिक्षा में पीछे रहे वो बने सरकारी शिक्षक, जनता की सुरक्षा भी तो तुम्हारे कर्तव्य में नही आती, जो खुद लड़कर ना जीत सके  उन्हें मिलती वर्दी खाकी, हम यह नहीं कहते कि आगे बस हम ही बढ़ते जाए पर देश का हो नुकसान  भला हम कैसे सहते जाए? कोई करता इच्छा जाहिर की हमे बनना कलेक्टर, डॉक्टर, हां बेटा तुम बन जाओ कह देते सर सहलाकर, मजाक है क्या देश कोई जो उसकी इज्जत से खेल रहे, प्रतिभाशाली होते हुए भी पिछड़ा उसे बना रहे, बढ़ाना है जनजाति को तो चलना उन्हें सिखाओ, ना कि उठाकर गोद में दोड़ो, पंगु उन्हें बनाओ, बजाय इसके इतना करते  तुम सबको बराबर लाते, जिसकी प्रतिभा जिस क्षेत्र में हो उ

वास्तविक दान व उससे मिलने वाला सुख- लघुकथा

 भिक्षां देहि... भिक्षां देहि.....  साधु ने दो बार आवाज लगाई लेकिन कोई बाहर नहीं आया किंतु इस घर से उन्हें रोज भिक्षा मिलती है तो उन्होंने सोचा एक बार और आवाज लगाऊँ भिक्षां देहि..... फिर भी कोई बाहर नही आया तो वो साधु जाने लगे इतने में एक व्यक्ति झल्लाकर बाहर निकला और बोला क्या है? साधु विनम्रता से बोले- क्या बात है बेटा बड़े दुःखी दिखाई देते हो? चिंता मत करो ईश्वर सब ठीक करेंगे..। वो व्यक्ति फिर झल्लाया और बोला- कौन ईश्वर? कैसे ईश्वर? कहाँ के ईश्वर? मैंने ईश्वर में मानना छोड़ दिया है बहुत भक्ति कर ली कुछ नही मिला अब और नही। मैंने अभी अभी हिसाब लगाया साल भर में मैंने जितना दान दिया उसका दुगुना होकर मुझे मिलना चाहिए था लेकिन आधा भी नही मिला। साधु हँसे और बोले- बेटा.... तुमने सालभर कितना दान किया है उसका नही कितना धन व्यर्थ किया है उसका हिसाब लगाया है क्योकि फल उस दान का मिलता है जो श्रद्धा व निःस्वार्थ भाव से दिया गया हो पर तुमने तो एक एक रुपये का हिसाब लगाया है और बदले में दुगुना मिला या नही उसकी गिनती भी कर रहे हो तो तुम्हारा दान तो व्यर्थ हुआ ही समझो..। वह व्यक्ति बोला- अच्छा माना मैंन

सेहत सम्भाल लेंगे??

विकट तो है समस्या पर कोई तो हल निकाल लेंगे, सेहत अपनी ही तो है फिर सम्भाल लेंगे, खाना-पीना, यही है जीना, उधड़ेगी जो सेहत तो डॉ सारे है ना, डॉ को जो ज्ञान है इतना वो कब काम मे लेंगे, सेहत अपनी ही तो है फिर सम्भाल लेंगे, ऐसी ही आजाद है सोच अब आजाद सारे पंछी, खाओ पियो, मौज करो सेहत तो बिगड़ती बनती, इतने हल्के में लेते सेहत को जबकि यही जीवन का आधार, मन बेचा विकृत आहार को हम करते ही नही इनकार, शरीर हमारा, सेहत हमारी, पर काबू करे कोई और, कितने अक्लमंद है ना हम जो खुद डाल कर गले मे फंदा किसी ओर को थमा दी डोर, विकृत आहार यू लगे सुहाना मन भी चाहे बार बार खाना, लेकिन जहर ये मीठा है हम कब ये समझेंगे? सेहत अपनी ही तो है  फिर सम्भाल लेंगे, कहते है कुछ लोग की खाते ये आहार हजार, उनमे से बीमार पड़ते बस कुछ लोग दो चार, तो कह दु तुम्हे ये भूल तुम्हारी पेट समस्या है आम, आदत पड़ गयी बीमारी की  इसलिए दिखता नही अंजाम, कब्ज, गैस, सर कमर में दर्द इनसे बचा है कौन? फिर भी तुम ये पूछते हो  विकृत आहार से बीमार पड़ता है कौन? जो समस्या एक मे थी आज एक मे बाकी नही रही, योग ने काफी सम्भाला है पर  उसमे भी नियमितता बनी नही,