संदेश

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लघुकथा- ताकत

दो व्यक्ति आपस में बातें कर रहे थे... पहला बोला- यार मुझे आम बहुत पसंद है लेकिन आम गर्मी में ही क्यों आते हैं????? तो दूसरा आसमान की तरफ उंगली दिखा कर बोला-  बेटे हमारे पास टेक्नोलॉजी कि वो ताकत है जिससे हम प्रकृति को बदल सकते हैं और 12 महीने आम खा सकते हैं....। इतने में ही जोर की बिजली कड़की और झमाझम बारिश होने लगी।   पहला बोला- बिन मौसम बरसात यार कैसे और क्यो???  इतने में दो बड़े-बड़े ओले उनके सिर पर गिरे और आवाज आई - "बेटे तुमने मेरी तरफ उंगली दिखा कर ताकत की बात की तो सोचा मैं भी तुम्हें अपनी ताकत दिखा ही दूं...। संदेश-  इंसान टेक्नोलॉजी के नाम पर इतरा कर जो प्रकृति से टक्कर ले रहा है ना... यह भविष्य में बहुत भारी पड़ेगा क्योंकि प्रकृति और भगवान से बड़ी ताकत ना थी, ना है और ना होगी।

कभी कभी लगता है.....

कभी कभी लगता है  की इस दुनिया में अच्छा होना भी बहुत बुरा है... पर एक बात कहु अगर ये सोचकर सबने अच्छा बनने की  कोशिश छोड़ दी ना तो जो होगा इससे कही ज्यादा बुरा होगा... इसलिए दुनिया चाहे हँसे या पागल समझे पर यदि आप गलत नही तो झिझकना बन्द करो की "लोग क्या कहते है???"

विज्ञान....

किसी को कहते सुना की आज विज्ञान के कारण हमें बड़ी बड़ी बीमारियों का पता चला वरना पहले के लोग तो जान ही नही पाते थे। तो एक बात समझ में नही आयी की पहले के लोग जब जानते नही थे फिर भी 90 से 100 साल हष्ट पुष्ट जी जाते थे और आज की हालत तो आप जानते ही है। आज विज्ञान ने बीमारियों का पता तो लगाया पर ये बीमारियां क्यों हो रही है इसके बारे में पता नही लगाया? या यु कहु इन बीमारियों का फिर वह छोटी हो या बड़ी उनका कारण भी विज्ञान ही है। आज हम चाँद तक तो पहुँच गये पर ये भूल गए की हम रहते तो पृथ्वी पर है जहाँ हवा में उड़ना सम्भव नही फिर वह शारीरिक तौर पर हो या मानसिक तौर पर।  हमने तरक्की के नाम पर अपनी आदते इस हद तक बिगाड़ ली है कि अब उन्हें सुधारना हमारे स्वयं के वश में भी नही रहा। विज्ञान की तरक्की के नाम पर हम अपनी आँखों में चकाचौन्ध बढ़ाते जा रहे है और देखना भूल रहे है की उस चकाचौन्ध के पीछे का अँधियारा हमारे जीवन को घेर रहा है, वह जीवन जिसके पीछे ही हम है।  विज्ञान की तरक्की गलत है मैं यह नही कहती क्योकि मैं भी नवीनता (crativity) में विश्वास रखती हूँ किन्तु नवीनता में हम इतने भी ना खो जाए की हमारा भविष

कैसे ये शौक???

शौक हमारे खुनी है कातिल, पापी, हत्यारे है, ऐसे शौक जो उचित नही बस वही तो हमको प्यारे है, अपने शौक के खातिर हमने  जानवरो को मार दिया, बेफिजूल की जरूरतों पर जंगल का जंगल उजाड़ दिया, थोड़ी भी लज्जा, शर्म अब हममे बाकि नही रही, बिल्डिंगे खूब खड़ी हुई पर खेत दिखाई दे कही नही, मस्ती के गुलछर्रो में हम तनिक भर ना सम्भल रहे, देख देख बेशर्मी हमारी ईश्वर लज्जित हो रहे, प्रकृति भी कलप रही ईश्वर ये कहाँ मुझे छोड़ दिया? इन इंसानो ने मेरे  वजूद को ही निचोड़ दिया, ईश्वर बोले मैं भी हूँ शर्मिंदा अपनी रचना पर, अब तो बस तुम दिखा ही दो प्रकोप इन इंसानो पर, शुरू कर रही प्रकृति भी प्रकोप उसका झेलना है, कम है अभी तो समझ ले हम हमे गिरने से सम्भलना है, एक बार जो समय गया ये इससे बुरा अब आएगा, पता नही वो कौन सा जादू इंसानों को समझायेगा....।

माँ

माँ पर लिखना समंदर लिखो, पर बूंद भर भी ना  लिख पाते, माँ का है किरदार ही ऐसा शब्द ही सारे कम पड़ जाते, माँ से ही सारी दुनिया है निःस्वार्थ प्रेम की है अवतार, माँ के चरणों मे स्वर्ग बसा है जो जान ले धन्य हो उसका संसार...।

भाई दूज- २०२०

एक रिश्ता है ऐसा जो कभी जताया नही जाता, भाई बहन का प्यार कभी दिखाया नही जाता, लड़ाई, झगड़ो में आसानी से छुपा लेते वो मन की बात, साथ रहे तो लड़ते है हरदम पर एक दूजे के बिना भी इनसे रहा नही जाता.....।

दादी माँ

माँ की साँस, पापा की माँ, माता-पिता दोनों का प्रेम मिलता जिनसे वह दादी माँ.....। 😊😊🥳🥳🥳😊😊

2 अक्टूबर- दो रत्नों का मेल

आज दिवस है बड़ा निराला दो रत्नों का मेल है, कैसे लड़ना है यह सबका अपना अपना खेल है, कोई है जाबांज यहाँ पर कही जोश भरपूर, तो किसी की रणनीति ने तोड़ा अंग्रेजो का गुरुर, ऐसे ही दो रत्न हमारे गांधीजी और शास्त्रीजी, सांप मरे लाठी न टूटे ऐसी इनकी नीतियां थी, सादगी और सौम्यता लेकिन जोश भरा हर अंग, तरकीब और तकनीकों से जीती कई सारी जंग....।

बचपन

झगड़ा जितना उतना प्यार,  ऐसा ही होता है बचपन का संसार,  रूठना, मनाना, रोना, गाना,  वो बचपन फिर से मिल जाये यार,  बड़े होने में वो मजा नही  क्योकि समझदारी कुछ ज्यादा है,  बचपन ही सबसे प्यारा होता  नफरत का ना कोई इरादा है....।

मौका मिले वहाँ सीखना

ना रूकना, ना थमना  और ना कभी घबराना, तुझे जहाँ से मौका मिले ना यार तू कुछ न कुछ सीखना, मुश्किलें आती है  और आती ही रहेंगी, जो तुझे रोकेंगी, खिंचेगी, धक्का मारकर गिरा भी देगी, पर तू उन्हें जवाब देना  और फिर खड़े हो जाना, तुझे जहाँ से मौका मिले ना यार तू कुछ न कुछ सीखना, और चाहे उतना आगे बढ़ जाना लेकिन उसके बाद भी तुझे जहाँ से मौका मिले ना यार  तू कुछ न कुछ सीखना और बस सीखते ही रहना....।

संजा का कोट किला

आज बनाया कोट किला तरह तरह की चीज़ों से, गोबर से आकार दिया फिर सजा चमकीले कागज से, भुट्टे का है ढोल यहाँ पर  गेंहू, ज्वार की आँखे है, सुंदर रथ में भरतार जी संजा को लेने आते है, कौआ, मिट्ठु, सोलह सखियाँ जाड़ी जसोदा, पतली पेम, सोलह दिन का उत्साह लेकर आती अपनी संजा बेन, नई कलाएँ आजमाने को मौके खूब मिलेंगे ही, पर पुरानी कलाओ का आनन्द मिल रहा वह है हमारी खुशकिस्मती....।

स्वतंत्रता दिवस- 2020

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मित्रता दिवस

*प्यारी सखी* ओ मित्र मेरी, क्या कहुँ? अब तू ही बता, प्यारी प्यारी यादो से तूने तो भंडार भरा, नही चाहती छुटे कोई पर सबकुछ सुना नही सकती, जीवन के वो अनमोल पल चंद शब्दो में गिना नही सकती, लेकिन फिर भी इतना कहूंगी याद तेरी जब आती है, आँखों में वो यादो की फिल्म शुरू हो जाती है, बस उन मीठे पलों के जैसे दोस्ती हमारी बने रहे, खटास कभी भी ना पड़े उन खट्टी मीठी यादो में......। मित्रता दिवस की ढेर ढेर ढेर सारी बधाई। *नूतन पू.त्रि.*

गरिमामयी पद- प्रत्यक्ष गरिमा

आप किसी रॉकस्टार से कहो कि जनता के सामने साधारण कपड़ों में जाओ तो वह कहेगा नहीं, यह मेरी शान के खिलाफ है।      आप किसी शिक्षक से कहो कि बच्चों के सामने बंदरों जैसी हरकतें करो तो वह कहेगा नहीं, यह मेरी शान के खिलाफ है।       आप किसी नेता से कहो की जनता के सामने नाचे गाएँ तो वह कहेगा नही, यह मेरी शान के खिलाफ है।        आप किसी जोकर से कहो की सबके सामने गम्भीर रहो तो वह कहेगा नही, यह मेरी शान के खिलाफ है। इनके अतिरिक्त और भी कई ऐसे पद हैं जिनकी विशेष गरिमा होती है, जो प्रत्यक्ष होती है। हर कोई अपने पद की प्रत्यक्ष गरिमा को बनाए रखने के लिए कई बार अपनी इच्छाओं को मारता भी है क्योंकि वह अपने पद का सम्मान करता है और जो अपने पद का सम्मान नहीं करता उसे दूसरों से सम्मान नहीं मिलता है।           ठीक ऐसे ही एक और पद है जो सभी पदों से कहीं ऊपर है और वह है स्त्री पद। जिसकी भी कुछ प्रत्यक्ष गरिमा होती है जिसे वही बनाए रखती है जो अपने स्त्री होने पर गर्व करती है। क्योंकि हर कोई अपने पद की प्रत्यक्ष गरिमा को बनाए रखने के लिए मेहनत करता है तो यह कहना गलत नही की स्त्री को भी अपने पद की प्रत्यक्ष गरिमा

सोशल मिडिया का जादू

सोचा ना समझा ना जाना है, एक ने डाला है जाने क्या कुछ भी, सबने उसे ही सच माना है, इसे ही कहते सोशल मिडिया का जादू, हुए है सभी अपने आप में बेकाबू, याददाश्त सभी की हुई कमजोर, सोशल मीडिया जो एक बार कह दे, संध्या को ये भी कहेंगे भोर.....।

नाग पंचमी

शोभा हे महादेव की, नारायण की शान, फन उठाकर हर लेते पापियों के प्राण, नाग पंचमी पर हम आपको करते है नमन, कोरोना की और उठाओ अपने सारे फन....।

कोरोना का डर

बाहर से आए चाचा जी को  हो गया जुकाम, कोरोना तो नही रे बाबा मोहल्ले वाले परेशान, क्या करे अब हमको तो कुछ समझ नही आये, घर बुलाये डॉ को या अस्पताल ले जाये, अस्पताल ले जाये लेकिन  साथ में फिर कौन जाये? साथ में जाये और कही  कोरोना ना लग जाये, चाचाजी तो ओहो रे बाबा छींक छींककर हारे है, पड़ोसी बोले संयम रखो हम डॉ को बुला रे है, चाचाजी को समझ ना आये डॉ क्यूँ....? आ.....आ छू....., मुझको तो कुछ हुआ नही मैं तो बिलकुल ठीक ही हूँ, बोले मिस्टर तोषी जी अरे चाचाजी ना घबराओ, बाहर कहाँ से आये थे बता दो हमसे ना छुपाओ, देखो थोड़ी सी गलती से हम कंटेन्मेंट में आएंगे, आपके साथ साथ हम सब भी कोरोना मरीज बन जायेंगे, इतने में चाचीजी का भी अंदर से आना हुआ, छींक छींककर उनका भी तो हो रहा है हाल बुरा, घबराए पडोसी चाचा बोले हे भगवान एक और कोरोना, अब क्या होगा हम सब का? तू ही हमे बचा लेना, झल्लाकर चाचीजी बोले रे मूर्खो तुम्हे अक्ल नही, छोंक लगा है मिर्ची का गन्ध तुम्हे क्या आती नही? चश्मा मैने सुबह से आज जाने किधर को रख दिया, कम दिखता है इसी वजह से भूल से मिर्ची को छोंक दिया, ओ हो हो तो बात ये थी हाय मन का बोझ अब उतर गय

ईश्वर का पैगाम, भक्तों के नाम

कौन हूँ मैं? कहने को तो आप लोगो का भगवान हूँ पर क्या मैं वास्तव में भगवान हूँ? भगवान कौन होते है? इस पूरी सृष्टि के रचयिता, आप के रचयिता। पर क्या आप इस बात को गम्भीरता से लेते हो? आपकी हर समस्या को लेकर आप (सभी भारतवासी) हमारे पास आते हो समस्या हल मिला तो पूजोगे वरना कभी नही पूछोगे। कुछ मनुष्य कहते है भारत में इतनी पूजा पाठ होती है फिर भी भारत आगे क्यों नही बढ़ता? विदेशी पूजा पाठ नही करते फिर भी सुखी दिखाई देते है। ये सत्य है कि भारतीय पूजा पाठ में अग्रणी है किंतु उतने ही अग्रणी भारत के मनुष्य हमारा अपमान करने में है यह भी एक सत्य है। हम तो आपकी श्रद्धा की आस लगाते है और आप हमें लालची जानकर कभी रूपये तो कभी किसी अन्य वस्तु का लोभ दिखाते है। आज का समय है जब भारत में हमारी पूजा कम अपितु हमारा अपमान अधिक होता है। अरे हम तो कण कण में है ही किन्तु आप यह जानने के बजाय हमे कण कण में दिखाने की कोशिश करते हो और हमारा अपमान करते हो। स्पष्ट रूप से कहते है हमारा तात्पर्य क्या है? कुछ दिनों पूर्व हम धरतीलोक भृमण पर आये थे। वैसे तो हमे परिस्थितियां ज्ञात थी किन्तु अब जब हमने स्वयं आकर महसूस की तो मन

महादेव पर दूध

*महादेव पर दूध, जल चढ़ाने के खिलाफ पटर - पटर बोलने वालों जरा सुनो ना...।*  बड़ी बड़ी होटलों में खाने का दुगना पैसा देने के बजाय घर का खाना खाकर उन पैसों से गरीबों को भोजन कराओ ना......।  बेफिजूल गाड़ी दौड़ाने की बजाय कभी पैदल चलकर तो कभी बस में सफर कर पेट्रोल के पैसे बचाओ और गरीब बच्चों को खिलौने दिलाओ ना....। सिनेमा में बार-बार जाने के बजाय कभी तो वृद्ध आश्रम या अनाथ आश्रम हो आओ ना....। अपनी महंगी जरूरतों से पैसे बचाकर एक ही सही पर प्रतिभाशाली गरीब बच्चे को पढ़ाओ ना....।  और अगर यह सब करने की हिम्मत नहीं तो अपनी जुबान पर लगाम लगाओ ना....।  धर्म के खिलाफ तो मुंह उठाकर आ जाते हो कभी झूठे दावे करने वाली कंपनियों के खिलाफ बोल कर दिखाओ ना....।  जिन महादेव को तुम काला पत्थर कहते हो उन्हीं के मंदिर में जब भंडारा होता है ना तो गरीब अमीरों के साथ बैठ कर खाते हैं जो यदि किसी दुकान, हॉटल, मॉल या सिनेमा के बाहर भी दिख जाए तो धुत्कार कर भगा दिए जाते हैं। हम महादेव पर दूध चढाने में मानते हैं तो मंदिर के बाहर बैठे गरीब को कुछ ना कुछ देना भी जानते हैं।  भोजन में भी जीवन है, जल में भी जीवन है लेकिन सा

संस्मरण- तुम बहु हो

कुछ दिनों पहले की बात है घर में तैयारी चल रही थी..। किस त्यौहार की? नही नही त्यौहार की नही दरअसल रिश्ते के लिए लड़के वाले आने वाले थे। तो बात अब ये थी की मुझे क्या-क्या पहनना है? कौनसा सूट? कौन सी ज्वेलरी? इसी पर बात चल रही थी। तब काफी देख परख के बाद एक सूट तय हुआ। अब बारी आई गहनों की..... तब भाभी बोले दीदी आपकी बालियाँ(सोने की) बहुत छोटी है लड़के वालों के सामने थोड़ा वट पड़ना चाहिए। आप ऐसा करो आप मेरे टाप्स पहन लो मैं आपके या फिर कोई खोटे पहन लुंगी....... तभी माँ ने बिच में ही टोकते हुए कहा- *नही तुम बहु हो*  बेटी सोना पहने या ना पहने पर तुम घर की लक्ष्मी हो तुम्हे अपने गहने नही उतारने है...। माँ के इन शब्दों को सुनकर हर किसी के चेहरे पर एक भावपूर्ण मुस्कान आ गयी...। ☺️

पिता

एक परछाई जो रहेगी साथ सदा, जो छाँव में भी करती अपना फर्ज अदा, हमारी परछाई तो सिर्फ रौशनी में साथ है, पर जो अँधेरे में भी साथ दे वह परछाई है पिता....।

टिड्डी से संवाद

*टिड्डी से संवाद* आज सुबह छत पर  एक टिड्डी मुझसे टकरा गई, झुंड से बिछडकर रो रही थी तो दया मुझको आ गयी, फिर मेने सोचा अरे! ये दया के नही है काबिल, खेत इतने उजाड़ दिए खड़ी कर रहे मुश्किल, पर चूंकि वो अकेली थी तो जोर जमाना ठीक नही, इसीलिए धीरे से पूछा क्या हुआ तुम रो क्यों रही? बोली झुंड खो गया डर रही सुना है तुम हमे भी खाते, पर हमें जो ईश्वर ने दिया हम तो बस वही है खाते, तुम इंसानो के मारे तो  पूरी प्रकृति परेशान है, दिमाग सही से क्यों ना चलाते? वो तो तुम्हारी शान है, अब परिस्थिति हुई ये की समझ मुझे ना आ रहा, कौन गलत है और किसे गुनहगार ठहरा रहा, फिर मेने कहा उसे कोशिश पूरी करेंगे, खुद समझेंगे और दुनिया वालो को भी समझायेंगे, और रही बात तुम्हे खाने की तो ये चीन नही भारत है, जो काफी कुछ बदल गया पर अब भी बहुत कुछ जाग्रत है, उसे कहा अब तुम उड़ जाओ पर अब और हमे ना सताना, वो भी टांट गजब की दे गयी बोली कोशिश करेंगे पर पहले तुम दिमाग वालो तो सुधर जाना...। *नूतन पू.त्रि.*

एकांत

हर घड़ी यह सोचती हूँ की क्यों इतनी अकेली हूँ मैं? क्यों कोई और नही खुद ही खुद की सहेली हूँ मैं? तब कही से जवाब आया  यह अकेलापन नही एकांत है, अपने अंदर झांको, खूबियां तराशो, इसीलिए तुम्हे मिला माहौल इतना शांत है.....।

त्राहिमाम त्राहिमाम

*त्राहिमाम त्राहिमाम* त्राहिमाम त्राहिमाम, प्रभु हमे भी दो जुबान, नही सही जाती है अब बेदर्दी इंसानो की, कितना सताते तड़पाते  क्या यही है होती बुद्धिमानी, आपने इनको बुद्धि दी पृथ्वी के सब अधिकार दिए, देखो उन्होंने उस बुद्धि से हम पर क्या उपकार किये, मैं हथिनी जो गर्भवती थी किसका बुरा किया था मैंने, विस्फोटक फल खिलाया मुझको नीच इंसान के क्या कहने, भूख लगी है माँ मुझको  पेट में बच्चा बोला था, मनमोहक एहसास से मेरा रोम-रोम तब डोला था, खाया तब अनानास जो मुझको लगा की बेटा खायेगा, नही जानती थी वह फल हम दोनों को तड़पाएगा, नीच इंसान ने हद कर दी अब नही सहेंगे अत्याचार, हमे भी हो लड़ने का हक चाहिए अब सारे अधिकार, शक्ति हममे इतनी है  हम खुद ले लेंगे अपना मान, इंसानो को धूल चटाकर धूमिल करेंगे उनका नाम, हाथ में अपने लेंगे प्रकृति खूब बढ़ाएंगे उसकी शान, त्राहिमाम त्राहिमाम, प्रभु हमे भी दो जुबान....। *नूतन पू.त्रि.*

चीन का बहिष्कार

*चीन का बहिष्कार* मित्रो,   चीन का बहिष्कार आज देश में बड़ा व अहम मुद्दा बन गया है जिसमे कई लोग इसके समर्थक है तो कई विरोधी। जो समर्थक है वे सोचते है कि जो देश हमारा बुरा चाहता है उससे रिश्ता शीघ्र ही पूर्णतः टूटना चाहिए जो की सम्भव नही और जो विरोधी है वह यह सोचते हैं कि चीन के बिना हमारा देश पंगु हो जाएगा जो तो बिल्कुल संभव नहीं।         मेरे अनुसार चीन का बहिष्कार तीन स्तरों पर होना चाहिए।  *1) उन चीजों का बहिष्कार हो जिनका विकल्प हमारे पास उपस्थित हो । हो सकता है विकल्प उतना अच्छा ना हो पर इतना बुरा भी नहीं होगा कि उसका उपयोग न किया जा सके।* *2) उन चीजों का बहिष्कार हो जिनका विकल्प तो नहीं पर वह इतनी आवश्यक भी नहीं कि जिसके बिना आपका जीवन रूक जाए या आपकी प्रगति रुक जाए या आपका कार्य अटक जाए।* *3) यहां वह चीजें आती है जो आज जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है जैसे मोबाइल व कुछ इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं। जिसका समय तब आएगा जब देश से उपयुक्त चीजें पूर्णतः बहिष्कृत हो जाएंगी अर्थात आखरी पायदान पर और संभव है कि तब तक भारत भी इसका विकल्प खोज ले।* अब जो चीन के बहिष्कार का विरोध करते हैं वह यह कहते हैं

अपना कुक्षी

आज दिनांक २८ मई सन है २०२०, दुकान खुलने की छूट मिली जब मिली क़ुक्षी को जीत, कोरोना से जंग छिड़ी थी लेकिन कुक्षी जीत गया, संयम रखना, स्थिर रहना हमारा कुक्षी सीख गया, जो सड़कें थी अब तक मौन थोड़ी थोड़ी चहक रही, पर धड़ल्ले से भागना नही मिली है छूट जो कीमती बड़ी, हँसते और मुस्कुराते से चेहरे बाहर दिखते है, भाव को समझो तो क्या हुआ? जो मास्क के पीछे छिपते है, कहते है कुछ लोग ये लॉक डाउन इतना भी था बुरा नही, दिनचर्या भी सुधर रही और जीवन की कई सीख मिली, झटका-झटकी शुरू हुई दुकानें थी जो अब तक बन्द, संयम रखो जरूरी है जो अभी रहे सब धंधे मंद, खुल रही दुकानें लेकिन सुरक्षा करना पूरी है, लेन-देन तो होगा लेकिन दुरी बहुत जरूरी है, अशांत था मस्तिष्क आपका बाहर आकर शांत हुआ, लेकिन यह भूलना नही कोरोना से देश अभी बंधा हुआ, व्यर्थ में पैसा बहाना नही तुम खर्चो जितनी जरूरत हो, यह बात बस अभी नही जीवन भर खुद को समझाते रहो, *सम्भलकर रहना, सुरक्षित रहना* *यही देती हूँ शुभकामनाएँ* *ईश्वर से विनती है यही* *कुक्षी में अब कोई केस ना आये* *और सारी दुनिया कोरोना से* *जल्द से जल्द मुक्त हो जाये* *नूतन पू.त्रि.*

माँ

एक माँ जो मेरी जननी है, एक माँ जो भाषा हिंदी है, एक माँ जो सारे जगत की माँ, एक माँ जो मेरी संस्कृति है, माँ गंगा इतनी शीतल है, हर नदी जो इतनी पावन है, माँ भारती बसी है कण-कण में, माँ के प्रेम से सजा यह जीवन है

टेक्निकल माँ

आज जब टेक्नोलॉजी से सभी का जीवन आसान है, तो फिर माँ अकेली क्यों ममता तले परेशान रहे? बच्चों को संभालना अब तो बाएँ हाथ का खेल है, टेक्नोलॉजी से बच्चों का बस करवाना मेल जोल है, अब समय वो कहा रहा जब थाली लेकर माँ भागे, मोबाइल, टीवी चालू कर क्षण भर में काम यह निपटा दे, धूल में लिपटकर गंदे होकर अब बच्चे कहा आते है? घर में ही मोबाइल चलाकर ऊर्जा को बचाते है, अब ना सताना, ना तड़पाना, ना गिरना, ना चोट लगाना, बचपने पर हावी मोबाइल अब ना कोई शरारत करना, पागल थी वो माएँ जो  बच्चों के पीछे दिनभर पिसती, आज की माँ से सीखो कैसे मोबाइल थमाकर आराम करती, एक छोटी सी चीज है जो हर काम माँ का निपटा देती, अच्छा ही सब मानो जो यह टेक्नोलॉजी सीखा देती, संस्कारो की जरूरत क्या? सेहत का क्या काम? बड़े तो यु भी हो जायेंगे दवाईयाँ होगी आम, त्याग, समर्पण थी जो सूरत स्वार्थी मूरत हो गयी, ममतामयी जो माँ होती थी टेक्निकल अब हो गयी....। माफ़ करना जो बुरा लगे तो लेकिन सच जो दिखे यहाँ, कैसे हो बर्दाश्त जो लापरवाही में बच्चों का भविष्य ढहा....।

गृहणियों को समर्पित

*क्या आप गृहणी हो???* "हां" *क्या आप घर की सारी जिम्मेदारियाँ निभाती हो???* "हाँ" *क्या आप स्त्रियों की इन जिम्मेदारियों को मजबूरी मानती हो???* "हाँ" *अरे !*  ये क्या बात करती हो? गृहणी के कार्यो को मजबूरी कहती हो!! लेकिन क्यों? क्योकि दुनिया के सामने जब कहो की तुम एक गृहणी हो तो वो तुम्हे साधारण समझते है इसीलिए??? तो तुम्हारे भीतर यह क्षमता नही की तुम उन्हें यह बता सको की सफल गृहणी होना कोई साधारण बात नही। गृहणी होने में बुराई क्या है? यदि आपको यह लगता है कि गृहणी की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्री ही क्यों निभाए पुरुष क्यों नही? तो ऐसा है जिम्मेदारी कोई खिलौना नही जो किसी भी बच्चे को थमा दे, वह घर की महत्वपूर्ण डोर है जो उसी को थमाई जा सकती है जो उसके काबिल हो। आप गृहणी होने पर स्वयं को दूसरों से कम क्यों आंकती हो? ऐसा नही है कि गृहणी होने का मतलब है अपनी सारी इच्छाओं को मार देना बस थोड़ा संतुलन बिठाना होता है और यह तो पुरुष भी करते है क्योकि परिवार की जिम्मेदारी तो उन पर भी आती है। देखो ऐसा है स्त्रियां घर का काम करे और पुरुष बाहर का यह इसलिए नही किया गया कि स्त

माता - पिता

हमारे प्रेम का बखान निःशब्द है पर फिर भी लिखना चाहती हूँ, आपके आशीर्वाद तले  जीवन भर जीना चाहती हूँ, आप दोनों का स्नेह  मेरे जीवन की प्रीत है, आप मुझ पर गर्व करो बस वही तो मेरी जीत है, आपने अपनी खुशियों से  मेरा जीवन सँवारा है, दुःख भी दुःख कभी लगे नही आपका प्रेम ही इतना प्यारा है, आपके चरणों में ही अपना  स्वर्ग में पाती हूँ, मेरे पहले ईश्वर हो आप  आपके चरणों में सर झुकाती हूँ

लघुकथा- उपहार

8 साल का टिंकू कई दिनों के बाद अपने पापा के साथ बाहर जा रहा है....। "अरे पापा जल्दी चलो ना" "हाँ बेटा बस आ गया, लो फटाफट ये मास्क पहन लो" "पर पापा अब तो कोरोना नही है ना" "हाँ बेटा पर मास्क की आदत डाल ही लो क्योकि कोरोना हो न हो पर प्रदूषण तो बढ़ने ही वाला है।" "पापा मास्क में मेरा दम घुट रहा है, इसे निकाल दूँ..?" "अरे बेटा......" "हाँ ठीक है पता है आप हर बार की तरह यही बोलोगे की मैं तुम्हारी उम्र का था तो मैं भी तो पहनता था।" "नही बेटा, मैने बचपन में मास्क नही पहना हमारे समय तो वातावरण बहुत शुद्ध था, चारो और ताजी हवा होती थी।" "टिंकू उदास होकर बोला- तो पापा हमारे साथ ये चीटिंग किसने और क्यों की?" "पिता निःशब्द......" "बेटा फिर पूछता है, पापा बताओ ना......" "पिता बोलते है हमे माफ़ कर दो बेटा तुम्हारे साथ ये चीटिंग हमने ही की है हमे तो एक बढ़िया दुनिया मिली थी हमने तरक्की के आवेश में इसे खराब करके तुम्हे दे दी....(पिता उदास हो जाते है)" "बेटा बोला-  कोई बात नही पापा

पहनावे की आजादी- लेख

*वस्त्रों की मर्यादा व बंदिश में अंतर समझना अति आवश्यक है।* देश की आजादी के बाद स्त्रियों की आजादी की कहानी शुरू होती है....। जो पर्दा प्रथा से शुरू होकर जीन्स टॉप तक पहुँच चुकी है लेकिन कारवाँ अब भी जारी है....। आजकल स्त्रियों के लिए आजादी का मतलब बस अपने पसन्द के कपड़े पहनने जितना ही रह गया है। जिसके लिए अत्याचार, हम अबला नही है, तरक्की में रूकावट जैसे बहाने दिए जाते है जो की सारे निरर्थक है।  अभी कुछ दिन पहले एक मैसेज आया- *की कोई जीन्स पहनकर भी सम्मान देती है तो कोई घूंघट में भी गाली देती है।*    अब यहाँ दो अलग अलग बातों को जोड़ दिया, पहनावा और तमीज..। अरे! कपड़े कोई जादू की छड़ी है क्या जो पहना और सीरत बदल गयी? हाँ काफी हद तक कपड़ो का प्रभाव पड़ता है पर वो भी आपकी सोच अनुसार क्योकि कपड़े पूरा व्यक्तित्व नही अपितु व्यक्तित्व का एक हिस्सा है।  ऐसे तो मैं भी कह दूँ *की हमने मर्यादा में रहकर भी स्त्री को परिवार का नाम रोशन करते देखा है व पूरी आजादी मिलने के बाद भी परिवार को कोर्ट में घसीटते देखा है।*  कहने का मतलब यह की स्त्रियों का पहनावा जो दिन प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है असल में वो कोई आ

कोरोना काल- कठिन समय

आज देश जो गुजर रहा है बड़े ही मुश्किल दौर से, ऐसे में कुछ लोग लगे है देश की हालत तोड़ने, कठिन समय है साथ मांगता नही तुम्हारे ताने, लेकिन कुछ लोग लगे हुए है देश के उद्योग गिराने, देश विदेश की बात नही  यहाँ समय समय की बात है, विदेशो से दुश्मनी नही यहाँ देश के लिए जस्बात है, अब तक जो मजदूरों की हालत पर अश्रु लिए बैठे, पर मोदी ने कहा बस इसीलिए देशी उद्योग से यु ऐंठे, देशी चीजे हम ना खरीदे तो उद्योग बचेंगे कैसे? उन उद्योग में लाखों मजदुर अपना पेट भरेंगे कैसे? क्या हो जायेगा अगर जो तुम देशी चीज खरीद लोगे, चलो मांगती विदेशी  श्रेष्ठ गुणवत्ता का सबूत दोगे? लेकर भी गर आ जाओ तो देशी हमको प्यारा है, देश हमारा घर है और घर का उद्योग हमारा है, कारण नही जो करे बहिष्कार हम उद्योग विदेशी का, लेकिन जब तक उपलब्ध है उपयोग क्यों नही देशी का? लगे जरूरी तब तो खरीदे विदेशी उसमे खोट नही, बस इतना रखना ध्यान  ना पड़ जाये देश के उद्योगों को चोट कही, बाकि तुम तो वही करोगे जो भी तुमको करना है, पर देश के प्रति फर्ज हमारा हमको पूरा करना है.....।

कवि

लेखन कमाई का जरिया नही  अंदाज है, कविता लिखी जाती है जब मन में ठहरते साज है, युही बिखेर देते है हम कवि लोगो में अपना खजाना, श्रोता बस सुनने को उमड़ पड़े वही हमारे लिए ताज है.....। ☺☺☺☺☺☺ क्या आपमें भी कवियों वाला अंदाज है.......??????

मातृ दिवस

जो कहते है हमने कभी भगवान को नही देखा, तो क्या कभी उन्होंने अपनी माँ को नही देखा? चाहे मिल जाये सुख सारी दुनिया के, पर वो सुख असीम है जब सर हो माँ की गोद में, कद्र करते जो माँ के अनुपम स्नेह की, उनके मन में तो वर्षभर ही मातृ दिवस की उमंग भरी....।

कैसी ये दिवानगी?

कैसी ये दिवानगी? ईश्क, मोहब्बत की परिभाषा आज जो है वो सही नही, आकर्षण को प्रेम कहे यह बात हमे कुछ जमी नही, कैसी ये दिवानगी है? कैसा ये दिवानापन? एक से जब कोई बात न बने दूजे पर ठहरता है मन, प्रेम अगर तुम जानना चाहो रामायण खोलो और पढ़ो, पतिव्रता वो नारी थी श्रीराम जी जैसा चरित्र हो, इक्की, दुक्की प्यार की बाते कहना ही बस प्रेम नही, वास्तविक प्रेम की खोज एक बार तुम करो सही, ज्ञात तुम्हे हो जायेगा  की आज तो सब छलावा है, असल प्रेम तो हमारे साथ माता-पिता ने निभाया है.....।

कहाँ मिला सुकून...?

ना प्रतिभा में मिला, ना प्रतिष्ठा में मिला, ना ऐश में मिला, ना धन में मिला, जिस सुकून की तलाश  थी चारो और, वह और कही नही अंतर्मन में मिला......। ☺☺☺☺☺☺

शहीद जवान

एक दृश्य सामने आँखों के जहाँ शहादत पर है आँखे नम, अभी तीन महीने पहले ही भरी थी मांग और पहना कंगन, ना कुछ उसको कहना है  शब्द नही है मन है मौन, 3 महीने में पति खो दिया उसका दर्द समझे कौन? पाकिस्तान तो नही बचेगा कीमत भी चुकायेगा, पर कब तक जीवन उजड़ेंगे यह सिलसिला कब रूक पाएगा.....।

संस्मरण- बुजुर्गों का मान

एक बार हमारे घर पर केरी का अचार डल रहा था जो माँ डाल रहे थे तब वो हर चीज़ की मात्रा अगले कमरे में बैठे दादीजी को दिखाने जाते की यह इतना लू ठीक रहेगा ना... यह देखकर में फुस्स से हँस पड़ी और बोली माँ आपको इतने साल हो गए अचार डालते पर अभी तक आपको याद नही हुआ की कौन सी चीज कितनी डलेगी.....।  तब माँ ने कहा- *"ऐसा नही है कि मुझे पता नही पर दादीजी से इसीलिए पूछती हूँ ताकि उन्हें यह एहसास रहे की बुजुर्ग होने पर भी हमारे लिए उनका मूल्य वही है जो पहले था.....।"* यह वो सीख थी जिसका तरीका साधारण था लेकिन मूल्य कही ज्यादा कीमती था।

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