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माँ तुझसे क्या कहूँ?

माँ तुझसे क्या कहूँ? की तू रूप है उन फूलों का जिनमे हो कांटो का दर्द पर खुशबु हमको दे जाए। माँ तुझसे क्या कहूँ? की तू रूप है उस सूरज का जो कितना ही तप जाए पर रोशन हमको कर जाए। माँ तुझसे क्या कहूँ? की तू रूप है उन नदियों का राही की प्यास बुझाने को जो चट्टानों से लड़ जाए। तू तो है ईश्वर की काया, कड़कती धुप में बनती छाया, तुझसे ही तो माँ मैने, ख्वाबो का सुंदर मंजर पाया। दुनिया से मैं लड़ जाउंगी माँ तेरे सपने के खातिर कांटो पर भी चढ़ जाउंगी बस तू इतना वादा करना हो विश्वास तेरा मुझ पर साथ हमैशा मेरे रहना साथ हमैशा मेरे रहना ओ मेरी सुन प्यारी माँ तुझसे ही है ये जहाँ बस तुझसे ही है ये जहाँ

बाल दिवस

बाल दिवस पर यादो में वो बचपन के दिन छा गए मन में थोड़ा लगता भी है जाने वो दिन क्यों गये? खेर छोडो आओ चलो हम उन दिनों में चलते हैं जब हम अपना बाल दिवस धूम धाम से मनाते थे काफी दिनों के इंतजार के बाद वो दिन आ गया मस्ती मजाक में छूट दिलाने बाल दिवस लो आ गया नए नए रंग बिरंगे कपड़े आज तो पहनेंगे सर या दीदी कुछ नही आज साथ में खेलेंगे गीत सुनाए कविता गाए बाल दिवस पर धूम मचाए आज तो हम सब सेठ है साथ में मिलकर नाश्ता खाए बैठे है हम राह ताक रहे कब सर नाश्ता लाएंगे नाश्ता खाकर छुट्टी होगी घर फिर धूम मचाएंगे आज का दिन है कितना सुहाना काश यही पर थम जाए रोज हम सब स्कूल जाकर मस्ती करके घर आये