माँ तुझसे क्या कहूँ?
माँ तुझसे क्या कहूँ? की तू रूप है उन फूलों का जिनमे हो कांटो का दर्द पर खुशबु हमको दे जाए। माँ तुझसे क्या कहूँ? की तू रूप है उस सूरज का जो कितना ही तप जाए पर रोशन हमको कर जाए। माँ तुझसे क्या कहूँ? की तू रूप है उन नदियों का राही की प्यास बुझाने को जो चट्टानों से लड़ जाए। तू तो है ईश्वर की काया, कड़कती धुप में बनती छाया, तुझसे ही तो माँ मैने, ख्वाबो का सुंदर मंजर पाया। दुनिया से मैं लड़ जाउंगी माँ तेरे सपने के खातिर कांटो पर भी चढ़ जाउंगी बस तू इतना वादा करना हो विश्वास तेरा मुझ पर साथ हमैशा मेरे रहना साथ हमैशा मेरे रहना ओ मेरी सुन प्यारी माँ तुझसे ही है ये जहाँ बस तुझसे ही है ये जहाँ