त्रिवेदी परिवार की कहानी
लगता है एैसे जैसे रहते सारे यार बस कुछ एैसा ही है हमारा त्रिवेदी परिवार गर्मी की छुट्टियो मे घर पूरा भरा होता क्योकि सबका main अड्डा यही होता भाई बहन जब सारे मिलते मचती थी तब धूम Adjust होकर भर जाता था दादीजी का room ठहाको की जब रोजाना लगती थी फुहार बस कुछ एैसा ही है हमारा त्रिवेदी परिवार सभी बुआए कुक्षी मे साथ मे तब आती थी कोई अगर ना आए तो जबरदस्ती बुलाती थी नए कपडे पहनकर तब गायत्री मंदिर जाते थे कभी रास्ते मे आइसक्रीम तो कभी घर मंगवाते थे उस समय लगता था जैसे समा गया संसार बस कुछ एैसा ही है हमारा त्रिवेदी परिवार छत पर पानी छिटते छिटते गंगा माता खेलते थे हॉल मे रस्सी का झूला बांधकर सब झूलते थे वट सावित्री के दिन घर पर आम की दुकान लगना तब कुलर तो था नही तो रोज रात छत पर सोना उन छुट्टियो मे दम था लगती थी मजेदार बस कुछ एैसा ही है हमारा त्रिवेदी परिवार वो छुट्टिया अब कुक्षी मे वापस से ना आती है पत्तो की बाजी भी अब कभी कभी बिछ पाती है वो दिन ना कोई भुला है ना कोई भुल पाएंगे जब भी सारे साथ मे होंगे वो दिन तो याद आएंगे आज भी सब साथ मिले तो मस्ती होती बेशुमार बस कुछ एै