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बंजारों का खेल तमाशा

सड़क पर होने वाले करतब पर दो व्यक्तियों की बातचीत:- पहला- वाह क्या कला है कितनी मंझी हुई कलाकार है ये बच्ची। दूसरा- अरे क्या कला। बेचारी बच्ची से इस उम्र में ऐसे खेल करवाते है कैसे माता-पिता है ये। पहला- कमाल है यार तू उसकी प्रतिभा की तारीफ करने के बजाय उन्हें कोस रहा है। दूसरा- अरे काहे की प्रतिभा? ये तो जानलेवा खेल है ऐसा भी क्या और । पहला- अच्छा तो कल जब अपन एक डांस शो देख रहे थे तब उसमे arial एक्ट कर रही बच्ची को देखकर तो तू खूब तालियां बजा रहा था और कह रहा था वाह क्या telented बच्ची है। दूसरा- वो अलग बात थी वो बहुत बड़ा शो है उसमें सब देखरेख से होता है। पहला- तो यहाँ ये आसपास जो खड़े है क्या तमाशा देखने खड़े है? वो भी तो उस बच्ची की देखरेख में खड़े है। दूसरा- तू नही समझता ये लोग पैसे कमाने के लिए बच्चों से खेल करवाते है। पहला- तो डांस शो वाले क्या लोगो को मनोरंजन दान देने के लिए शो चलाते है। दूसरा- तू साबित क्या करना चाहता है? पहला- बात इतनी सी है कि एक गरीब यदि अपना मंच तैयार कर कला दिखाता है तो गलत और यदि वही गरीब किसी बड़े मंच पर जाकर वही कला दिखाये तो वह प्रतिभा। यहाँ जो तमाशा हो रह

संस्मरण- वो दिन याद आ गए

आज की ही बात है आज मंदिर के ओटले पर एक बच्ची बैठी थी जो 3री या 4थी में पढ़ती होगी। अपनी स्कूल गाड़ी की राह देख रही थी।  गाड़ी आने में समय था तो अपने बैग से कॉपी निकाली और परीक्षा का पढ़ने लगी।  वो इतनी जोर जोर से पढ़ रही थी की मुझे अंदर तक सुनाई दे रहा था।  मैं उसे देख ही रही थी की मुझे अपनी परीक्षा के दिन याद आ गए...........।  वो एक लाइन पढ़ती और फिर आती जाती गाड़ियों को देखने लग जाती फिर सर को झकोरती और पढ़ने में ध्यान लगाने की कोशिश करती।  थोड़ा पढ़ती और फिर आती जाती गाड़ियों को देखने लग जाती।  कुछ देर यह क्रम चलता रहा और फिर उसने कॉपी बन्द की और बेग में रख ली इस तरह आती जाती गाड़ियों को देखने का मनोरंजन जीत गया।  क्यों हम भी तो ऐसे ही करते थे न............। ☺☺☺☺☺☺