बात शायद 2018 की है। मैंने एक प्राइमरी स्कूल जॉइन की, जहाँ मैं नर्सरी क्लास को पढ़ाती थी। ये मेरे अनुभव की शुरुआत थी जिसमे मुझे बच्चों को संभालकर उन्हें सिखाना बिल्कुल नही आ रहा था। मैंने बहुत कोशिश की पर मुझसे नही हो पा रहा था। बच्चे तो मेरी बात सुनकर अनसुना कर देते थे। डांटने, मारने का तो सवाल ही नही उठता। मैंने तो सोच लिया था मुझसे नही हो पायेगा। फिर एक दिन जब मैं बच्चों को पढा रही थी अचानक से प्रिंसिपल मेम आ गए। उन्होंने देखा मुझसे बच्चे नही सम्भल रहे। वो अंदर आये उन्होंने मुझसे पूछा- तुम कितने साल की हो? मैंने कहा- 23 साल की हूँ मेम। और ये बच्चे कितने साल के है? मेम ने फिर पूछा, मैंने कहा- 3 से 4 साल के। तब प्रिंसिपल मेम ने जो मुझसे कहा वह मुझे अब तक काम आ रहा है जब आज मेरी एक बेटी है। मेम ने कहा- जब ये बच्चे 3 साल के है तो तुम भी 23 की नही 3 साल की हो। बच्चों के साथ 3 साल की बनकर रहो तब वो तुम्हारी हर बात मानेंगे। बस इस बात को मैंने अपने अंदर उतार लिया और कमाल ये हुआ कि मैं बच्चों की fav टीचर बन गयी। उस दिन मुझे 2 सीख मिली। एक तो की अगर आपसे कुछ नही
अजी तुम भी हमे कितना चिढ़ाते हो उपवास के दिन चटकारे लेकर खाते हो ऐसे तो जब भी धास लगती है चिढ़कर तुम्हारी नाक चटकती है एक छिक भी तुम्हे ना सुआति है खास खास कर आँख भर आती है पर मेरे उपवास के दिन धास को भी सुगंध बताते हो अजी तुम भी हमे कितना चिढ़ाते हो उपवास के दिन चटकारे लेकर खाते हो देखो प्यार में तो मेरे ना कोई झोल है पर मेरी भावना का तुम्हारी नजरो में कोई मोल है? भूख से मेरी जान निकल जाती है करेले की खुशबु भी नाक को भा जाती है और तुम हो की खाते समय मुझे पास में बैठाते हो अजी तुम भी हमे कितना चिढ़ाते हो उपवास के दिन चटकारे लेकर खाते हो यु तो तारीफों को मेरे कान तरसते है पर उपवास के दिन ये बादल जरूर बरसते है खाने में अचानक चटक आ जाती है नापसन्द सब्जी भी तुमको भा जाती है अचार, मुरब्बे की सुगंध बढ़ाते हो अजी तुम भी हमे कितना चिढ़ाते हो उपवास के दिन चटकारे लेकर खाते हो
जादूगरी सी ऊर्जा देता पीहर का नजराना, बचपन की यादों का होता सबसे अनमोल खजाना, पीहर से ही तो होती है अस्तित्व की शुरुआत, इसीलिए दादी बनकर भी पीहर से आते-आते नम हो जाती आँख।
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